जो शख्स बीमारी की वजह से खड़े हो कर नमाज़ नहीं पढ़ सकता यानी ऐसा है कि खड़े हो कर बैठने से ज़रर लाहिक़ होगा (नुक़्सान होगा) या बीमारी बढ़ जायेगी या देर में अच्छा होगा या चक्कर आता है या खड़े हो कर बैठने से क़तरा (पैशाब का) आयेगा या बहुत शदीद दर्द नाक़ाबिले बर्दाश्त पैदा हो जाये तो इन सब सूरतों में बैठ कर रुकूअ व सुजूद के साथ नमाज़ पढ़े। नमाज़ के फराइज़ के बयान में भी कई ज़रूरी मसाइल बयान किये जा चुके हैं।
अगर अपने आप बैठ भी नहीं सकता मगर लड़का या गुलाम या खादिम या कोई अजनबी शख्स वहाँ है कि बिठा देगा तो बैठ कर पढ़ना ज़रूरी है और अगर बैठा नहीं रह सकता तो तकिया या दीवार या किसी शख्स पर टेक लगा कर पढ़े ये भी ना हो सके तो लेट कर पढ़े और बैठ कर पढ़ना मुम्किन हो तो लेट कर नमाज़ ना होगी।
बैठ कर पढ़ने में किसी खास तौर पर बैठना ज़रूरी नहीं बल्कि मरीज़ पर जिस तरह आसानी हो उस तरह बैठे। हाँ दो ज़ानू बैठना आसान हो या दूसरी तरह बैठने के बराबर हो तो दो ज़ानू बेहतर है वरना जो आसान हो इख्तियार करे.
Nafal Namaz Mein Agar Thak Jaye To Deewar Ya Asaa (Dande) Se Tek (Support) Lagane Mein Haraj Nahin Warna Makrooh Hai Aur Baith Kar Padhne Mein Koi Haraj Nahin
Agar Chaar Rakat Waali Namaz Baith Kar Padhi Aur Chauthi Rakat Par Baith Kar Attahiyyat Padhne Se Pehle Qira'at Shuru Kar Di Aur Ruku Bhi Kiya To Is Ka Wahi Hukm Hai Ke Khada Ho Kar Padhne Waala Chauthi Ke Baad Jab Khada Ho Jaata Hai To Jab Tak Paanchwi Rakat Ka Sajda Na Kiya Ho To Attahiyyat Padhe Aur Sajda -e- Sahw Kare Aur Agar Paanchwi Ka Sajda Kar Liya To Namaz Jaati Rahi
Baith Kar Namaz Parhne Wala Dusri Rakat Ke Sajde Se Utha Aur Qira'at Ki Niyyat Ki Par Padhne Se Pehle Yaad Aa Gaya Ke Mujhe Attahiyat Padhni Thi To Ab Attahiyyat Padhe Aur Namaz Ho Gayi, Sajda -e- Sahw Bhi Nahin Karna Hai
मरीज़ बैठ कर नमाज़ पढ़ रहा था, चौथी रकअत पढ़ी और चौथी के सजदे से उठा तो उसे लगा कि तीसरी रकअत है और किरअत करना शुरू कर दी फिर इशारे से रुकूअ और सजदा किया तो नमाज़ जाती रही।
अगर दूसरी रकअत के सजदे के बाद ये लगा कि वो दूसरी है और किरअत शूरू की फिर याद आता तो अत्तहिय्यात की तरफ न लौटे बल्कि पूरी करे और आखिर में सजदा -ए- सह्व करे।
मरीज़ अगर खड़ा हो सकता है और रुकूअ और सजदा नहीं कर सकता तो भी बैठ कर इशारे से पढ़ सकता है बल्कि यही बेहतर है और इस सूरत में ये भी कर सकता है कि खड़े हो कर पढ़े और रुकूअ के लिये इशारा करे या रुकूअ कर सकता है तो रुकूअ करे और सजदे के लिये बैठ कर इशारा करे।
इशारे से नमाज़ पढ़ते हुये सजदा का इशारा रुकूअ से ज़्यादा पस्त होना चाहिये, ऐसा ना हो कि रुकूअ में जितने से इशारे करे, सजदे में भी उतना ही करे। ये ज़रूरी नहीं कि सर को ज़मीन से बिल्कुल लगा दे। सजदे के लिये तकिया वग़ैरह कोई चीज़ पेशानी के क़रीब उठा कर, उस पर सजदा करना मकरूहे तहरीमी है अब चाहे उसी ने वो चीज़ उठायी हो या किसी दूसरे ने। अगर कोई चीज़ उठा कर उस पर सजदा किया और सजदे में रुकूअ से ज़्यादा सर झुकाया जब भी सजदा हो गया मगर गुनाहगार हुआ और अगर रुकूअ से कम सर झुकाया तो सजदा हुआ ही नहीं। -(देखिये बहारे शरीअत)
अगर कोई ऊँची चीज़ ज़मीन पर रखी हुयी है उस पर सजदा किया और रुकुअ के लिये सिर्फ़ इशारा ना हो बल्कि पीठ झुकायी हो तो सहीह है बशर्ते कि सजदा के शराइत पाये जायें मस्लन वो चीज़ सख्त (Hard) हो, नर्म (Soft) ना हो ताकि पेशानी उस पर दबे और जम जाये और उस चीज़ की ऊँचाई 12 उंगल से ज़्यादा ना हो, इन शराइत के पाये जाने के बाद हक़ीक़तन रुकूअ व सुजूद पाये गये यानी इसे इशारे से पढ़ने वाला नहीं कहा जायेगा बल्कि हक़ीक़त में रुकूअ व सजदा हुआ और कोई खड़े हो कर पढ़ने वाला इसकी इक़्तिदा कर सकता है और ये शख्स जब इस तरह रुकूअ और सजदा कर सकता है और खड़े हो कर पढ़ने पर भी क़ादिर है तो इसका खड़ा होना फ़र्ज़ है।
अगर नमाज़ के दरमियान ये खड़े होने पर क़ादिर हो गया तो बाक़ी नमाज़ खड़े हो कर पढ़ना फ़र्ज़ है लिहाज़ा जो शख्स ज़मीन पर सजदा नहीं कर सकता मगर इन शराइत के साथ ज़मीन पर कोई चीज़ रख कर सजदा कर सकता है तो उस पर फ़र्ज़ है कि इसी तरह सजदा करे, उसके लिये इशारा जाइज़ नहीं और अगर वो चीज़ ऐसी नहीं जैसी बयान की गयी तो फिर वो हक़ीक़तन सजदा ना होगा बल्कि इशारा ही होगा और जब इशारा हो गया तो अब खड़े हो कर पढ़ने वाला इसकी इक़्तिदा नहीं कर सकता और अगर ये शख्स नमाज़ के दरमियान खड़े होने पर क़ादिर हुआ तो सिरे से नमाज़ पढ़े। -(देखिये बहारे शरीअत)
अगर पेशानी में ज़ख्म है जिसकी वजह से सजदे में माथा नहीं लगा सकता तो नाक पर सजदा करे और माथे को ना लगाये और अगर ऐसा ना किया बल्कि इशारे से नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ ना हुई।
अगर मरीज़ बैठ भी नहीं सकता तो लेट कर इशारे से नमाज़ पढ़े, अब चाहे दाहिनी या बाई करवट पर लेट कर क़िब्ला की तरफ़ मुंह कर के, चाहे लेट कर क़िब्ला को पाऊँ करे मगर पाऊँ को ना फैलाये क्योंकि क़िब्ला की तरफ़ पाऊँ फैलाना मकरूह है लिहाज़ा घुटने को खड़े रखे और सर के नीचे तकिया वग़ैरह दे कर ऊँचा कर ले ताकि मुँह क़िब्ला को हो जाये और अफ़ज़ल यही सूरत है कि चित लेट कर पढ़े।
अगर ऐसी हालत है कि इशारा भी नहीं कर सकता तो नमाज़ साक़ित है यानी अब ना पढ़े। इसकी ज़रूरत नहीं कि आंख, भवो या दिल के इशारे से पढ़े और अगर 6 वक़्त इसी हालत में गुज़र गये तो इनकी कज़ा भी साकित हो गई, फिदिया की भी हाजत नहीं है वरना सिहत के बाद इन नमाजो़ की क़जा़ लाज़िम है, अगर्चे इतनी ही सिहत हो कि सर से इशारा कर के पढ़ सके। -(देखिये बहारे शरीअत)
मरीज़ अगर किब्ला की तरफ़ ना अपने आप मुँह कर सकता है ना दूसरे के ज़रिये तो वैसे ही पढ़ ले और तंदरुस्त होने के बाद उस नमाज़ को दोहराना ज़रूरी नहीं और अगर कोई शख्स मौजूद है जो उसे किब्ला की तरफ़ कर देगा मगर उस ने उस से ना कहा तो नमाज़ ना हुई। इशारे से जो नमाजें पढ़ी है उन को सेहत के बाद दोहराना ज़रूरी नहीं।
अगर ज़ुबान बंद हो गई और गूंगे की तरह नमाज़ पढ़ी फ़िर ज़ुबान खुल गई तो इन नामाजो़ का इआदा (दोहराना) नहीं। मरीज़ इस हालत में पहुँच गया है कि रुकुअ और सुजूद की तादाद याद नहीं रख सकता तो उस पर अदा ज़रूरी नहीं।
तंदरुस्त शख़्स नमाज़ पढ़ रहा था और नमाज़ के दरमियान ऐसा मर्ज़ पैदा हो गया कि अरकान (Steps) अदा नहीं कर सकता तो जिस तरफ बैठ कर या लेट कर मुमकिन हो नमाज़ पूरी कर ले, सिरे से पढ़ने की हाजत नहीं है। -(देखिये बहारे शरीअत)
बैठ कर रुकूअ व सुजूद के साथ नमाज़ पढ़ रहा था और नमाज़ के दरमियान खड़े होने पर क़ादिर हो गया तो जो बाक़ी है उसे खड़ा हो कर पढ़े और अगर इशारे से पढ़ रहा था और नमाज़ के दरमियान रुकूअ और सजदा करने पर क़ादिर हो गया तो शुरू से नमाज़ पढ़े।
रुकूअ और सजदा नहीं कर सकता था और खड़े हो कर या बैठ कर नमाज़ शुरू की और रुकूअ और सजदा के लिये इशारा करने की नौबत आने से पहले अच्छा हो गया तो इसी नमाज़ को रुकूअ और सजदे के साथ पढ़े, सिरे से शुरू करने की हाजत नहीं और अगर लेट कर नमाज़ शुरू की थी और रुकूअ व सुजूद के इशारे से पहले खड़े होने, बैठने या रुकूअ व सुजूद करने पर क़ादिर हो गया तो सिरे से नमाज़ पढ़े।
चलती हुयी कश्ती या जहाज़ में बिला उज़्र बैठ कर नमाज़ सहीह नहीं बशर्ते उतर कर खुश्की में पढ़ सके और ज़मीन पर बैठ गयी हो तो उतरने की हाजत नहीं और किनारे पर बंधी हो और उतर कर खुश्की पर पढ़ सकता हो तो उतर कर पढ़े वरना कश्ती में ही खड़े हो कर और बीच दरिया में लंगर डाले हुये है तो बैठ कर पढ़ सकते हैं। -(देखिये बहारे शरीअत)
कश्ती या जहाज़ में अगर हवा के तेज़ झोंके लगते हों कि खड़े हो कर पढ़ेगा तो गुमान है कि चक्कर आ जायेगा तो बैठ कर पढ़ सकते हैं।
अगर हवा के झोंके से ज़्यादा हरकत ना हो तो बैठ कर नहीं पढ़ सकता और कश्ती पर नमाज़ पढ़ने में क़िब्ला की तरफ मुँह करना लाज़िम है और जब कश्ती घूम जाये तो नमाज़ी भी घूम कर क़िब्ला मुँह कर ले और अगर इतनी तेज़ गर्दिश हो कि किब्ला मुँह करने से आजिज़ है तो उस वक़्त ना करे यानी नमाज़ को बाद में पढ़े और अगर वक़्त जा रहा हो तो पढ़ ले।
जुनून या बेहोशी पूरे 6 वक़्त तक हो तो इन नमाज़ों की क़जा़ भी नहीं, अगर्चे बेहोशी आदमी या दरिंदे के खौफ से हो और इससे कम हो तो क़जा़ वाजिब है यानी 6 वक़्त से कम। -(देखिये बहारे शरीअत)
शराब या बंग पीने की वजह से अगर अक़्ल जाती रही तो क़ज़ा वाजिब है उन नमाज़ों की जो इस दरमियान में होंगी अगर्चे ये शराब या बंग दवा की गरज़ से इस्तिमाल की हो। अगर किसी ने मजबूर कर के शराब पिला दी तो भी क़ज़ा वाजिब है। सोता रहा तो भी क़ज़ा वाजिब होगी अगर्चे नींद पूरे 6 वक़्त को घेर ले।
अगर ये हालत है कि रोज़ा रखने पर खड़े हो कर नमाज़ नहीं पढ़ सकता और अगर रोज़ा ना रखे तो खड़े हो कर पढ़ सकता है तो रोज़ा रखे और नमाज़ बैठ कर पढ़े।
अगर मरीज़ ने वक़्त से पहले नमाज़ पढ़ ली इस ख्याल से कि वक़्त में ना पढ़ सकेगा तो नमाज़ ना हुयी और बगैर क़िरअत भी नहीं होगी और अगर क़िरअत से आजिज़ हो तो जायेगी। -(देखिये बहारे शरीअत)
औरत बीमार हो तो शौहर पर फ़र्ज़ नहीं कि उसे वुज़ू करा दे और ग़ुलाम बीमार हो तो वुज़ू करा देना मौला के ज़िम्मे है। अगर छोटे से खेमे में है कि खड़ा नहीं हो सकता और बाहर निकलता है तो बारिश और कीचड़ है तो बैठ कर नमाज़ पढ़े यूँ ही खड़े होने में दुश्मन का खौफ है तो बैठ कर पढ़ सकता है।
बीमार की नमाजें क़ज़ा हो गई और अब अच्छा हो कर इन्हें पढ़ना चाहता है तो वैसे पढ़े जैसे तंदरुस्त पढ़ते है, इस तरह नहीं पढ़ सकता जैसे बीमार पढ़ता है मसलन बैठ कर या इशारे से अगर इसी तरह पढ़ें तो ना होंगी और सिहत की हालत में क़ज़ा हुई और बीमारी की हालत में उन्हें पढ़ना चाहता है तो जिस तरह पढ़ सकता है पढ़े हो जायेगी, सिहत से पढ़ना इस वक़्त वाजिब नहीं।
पानी में डूब रहा है और अगर उस वक़्त भी अमले कसीर के बिना इशारे से पढ़ सकता है मस्लन तैरने वाला है या लकड़ी वग़ैरह का सहारा पा जाये तो पढ़ना फर्ज़ है वरना माज़ूर है, बच जाये तो क़ज़ा पढ़े। आँखो का इलाज करवाया और तबीबे हाज़िक़ मुसलमान ने लेटे रहने का हुक्म दिया है तो लेट कर इशारे से नमाज़ पढ़े।
मरीज़ के नीचे नजिस बिछौना बिछा हुआ है और हालत ये है कि अगर बदला जाये तो भी फिर वो इतना नजिस हो जायेगा कि जिससे नमाज़ नहीं होती तो उसी पर नमाज़ पढ़े। अगर उस बिछौने को बदला जाये तो फिर दूसरा बिछौना नजिस नहीं होगा पर इसे बदलने में शदीद तकलीफ़ होगी तो उसी पर पढ़ ले। (देखिये बहारे शरीअत)
मरीज़ की नमाज़ के बारे में जो मसाइल बयान किये गये उन पर गौर करें तो बखूबी मालूम हो जायेगा कि शरीअत ने किसी हालत में भी सिवाये बाज़ के नमाज़ माफ़ नहीं की बल्कि ये हुक्म दिया कि जिस तरह मुम्किन हो पढ़े (बैठ कर, लेट कर, इशारे से)
आज कल जो बड़े नमाज़ी कहलाते हैं उन की ये हालत देखी जा रही है कि बुखार आया या ज़रा सी शिद्दत का दर्द हुआ तो नमाज़ छोड़ दी, कोई फुड़िया निकल आयी तो नमाज़ छोड़ दी और यहाँ तक नौबत पहुँच गयी है कि सर दर्द और ज़ुकाम में नमाज़ छोड़ देते हैं।
हालाँकि अगर सिर्फ इशारे से पढ़ सकता हो और ना पढ़े तो जो अज़ाब नमाज़ छोड़ने वालों का है वो भी इस का मुस्तहिक़ होगा। अल्लाह त'आला रहम करे। (देखिये बहारे शरीअत)