नमाज़े इस्तिस्क़ा | Namaz E Istisqa Ka Tarika | Baris Ki Dua


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नमाज़े इस्तिस्क़ा | Baris Ki Dua

नमाज़े इस्तिस्क़ा | Namaz E Istisqa Ka Tarika | Baris Ki Dua

अल्लाह त'आला फ़रमाता है: وَ مَاۤ اَصَابَكُمْ مِّنْ مُّصِیْبَةٍ فَبِمَا كَسَبَتْ اَیْدِیْكُمْ وَ یَعْفُوْا عَنْ كَثِیْرٍ (پ۲۵،الشورٰی:۳۰)

तुम्हें जो मुसीबत पहुँची है वो तुम्हारे हाथों के करतूत से है और बहुत सी मुआफ़ फ़रमा देता है।

ये क़हत भी हमारे ही गुनाहों के सबब है, लिहाज़ा ऐसी हालत में कसरते अस्तग़फ़ार की बहुत जरूरत है और ये भी उसका फ़ज़्ल है कि बहुत से माफ़ फ़रमा देता है वरना अगर सब बातों पर मवाख़िज़ा करे तो कहाँ ठिकाना।

फ़रमाता है: لَوْ یُؤَاخِذُ اللّٰهُ النَّاسَ بِمَا كَسَبُوْا مَا تَرَكَ عَلٰى ظَهْرِهَا مِنْ دَآبَّةٍ (پ۲۲،فاطر:۴۵)

अगर लोगों को उन के कामों पर पकड़ता तो ज़मीन पर कोई चलने वाला ना छोड़ता।

इस्तिस्क़ा दुआ व अस्तग़फ़ार का नाम है। इस्तिस्क़ा की नमाज़ जमाअत से जाइज़ है मगर जमाअत इसके लिये सुन्नत नहीं चाहें जमाअत से पढ़ें या तन्हा तन्हा दोनों तरह इख़्तियार है।

इस्तिस्क़ा के लिये पुराने या पेवन्द लगे कपड़े पहन कर ख़ुसू व खुज़ू व तवज्जो के साथ बरहना सर पैदल जायें और पाऊँ बरहना हो तो बेहतर और जाने से पेश्तर खैरात करें। कुफ़्फ़ार को अपने साथ ना ले जायें कि जाते हैं रहमत के लिये और काफ़िर पर लानत उतरती है। तीन दिन पहले से रोज़े रखें और तौबा व अस्तग़फ़ार करें फिर मैदान में जायें और वहाँ तौबा करें और ज़ुबानी तौबा काफ़ी नहीं बल्कि दिल से करें और जिन के हुक़ूक़ इस के ज़िम्मे हैं सब अदा करे या माफ़ कराये। कमज़ोरों, बूढ़ों, बुढ़ियों, बच्चों के तवस्सुल से दुआ करें और सब आमीन कहें।

सहीह बुखारी में है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि तुम्हें रोज़ी और मदद कमज़ोरों के ज़रिये से मिलती है। उस वक़्त बच्चे अपनी माँओं से जुदा रखे जायें और मवेशी भी साथ ले जायें ग़र्ज़ ये कि रहमत की तवज्जो के लिये हर सामान मुहैय्या करें और तीन दिन लगातार जंगल को जायें और दुआ करें।

और ये भी हो सकता है कि इमाम दो रकअत जहर (बुलंद आवाज़ से किरअत) के साथ नमाज़ पढ़ाये और नमाज़ के बाद ज़मीन पर खड़ा हो कर खुत्बा पढ़े और दोनों खुत्बों के दरमियान जलसा करे और ये भी हो सकता है कि एक ही खुत्बा पढ़े और ख़ुत्बे में दुआ व तस्बीह व अस्तग़फ़ार करे और आस्ना -ए- खुत्बा में चादर लौट दे यानी ऊपर का किनारा नीचे नीचे का ऊपर कर दे कि हाल बदलने की फाल हो, ख़ुत्बे से फ़ारिग़ हो कर लोगों की तरफ पीठ और किब्ला की तरफ रुख कर के दुआ करें। बेहतर वो दुआयें हैं जो अहादीस में वारिद हैं और दुआ में हाथों को खूब बुलंद करे और पुश्त दस्त जानिबे आसमान रखे।

अगर जाने से पेश्तर बारिश हो गयी, जब भी जायें और शुक्रे इलाही बजा लायें और बारिश के वक़्त हदीस में जो दुआ इरशाद हुयी पढ़े और बादल गरजे तो उसकी दुआ पढ़े और बारिश में कुछ देर ठहरे कि बदन पर पानी पहुँचे।

कसरत से बारिश हो कि नुक़्सान करने वाली मालूम हो तो इस के रोकने की दुआ कर सकते हैं और इसकी दुआ हदीस में ये है :اَللّٰھُمَّ حَوَالَیْنَا وَلَا عَلَیْنَا اَللّٰھُمَّ عَلَی الْاٰکَامِ وَالظِّرَابِ وَبُطُوْنِ الْاَوْدِیَۃِ وَمَنَابِتِ الشَّجَرِ

इस हदीस को बुखारी व मुस्लिम ने अनस रदिअल्लाहु त'आला अन्हु से रिवायत किया।