अल्लाह त'आला फ़रमाता है:
فَاِنْ خِفْتُمْ فَرِجَالًا اَوْ رُكْبَانًاۚ-فَاِذَاۤ اَمِنْتُمْ فَاذْكُرُوا اللّٰهَ كَمَا عَلَّمَكُمْ مَّا لَمْ تَكُوْنُوْا تَعْلَمُوْنَ
अगर तुम्हें खौफ़ हो तो पैदल या सवारी पर नमाज़ पढ़ो फिर जब खौफ़ जाता रहे तो अल्लाह त'आला को उस तरह याद करो जैसा उस ने सिखाया वो कि तुम नहीं जानते थे।
नमाज़े खौफ़ जाइज़ है , जबकि दुश्मन का क़रीब में होना यक़ीन के साथ मालूम हो और अगर ये गुमान था कि दुश्मन क़रीब में हैं और नमाज़े खौफ़ बाद में गुमान की ग़लती ज़ाहिर हुयी तो मुक़तदी नमाज़ का इआदा करें यूँ ही अगर दुश्मन दूर हो तो ये नमाज़ जाइज़ नहीं यानी मुक़तदी की ना होगी और इमाम की हो जायेगी।
नमाज़े खौफ़ का तरीका ये है कि जब दुश्मन सामने हो और ये अंदेशा हो कि सब एक साथ नमाज़ पढ़ेंगे तो हमला कर देंगे, ऐसे वक़्त इमाम जमाअत के दो हिस्से करे। अगर कोई इस पर राज़ी हो कि हम बाद में पढ़ लेंगे तो उसे दुश्मन के मुक़ाबिल करे और दूसरे गिरोह के साथ पूरी नमाज़ पढ़ ले फिर जिस गिरोह ने नमाज़ नहीं पढ़ी इस में कोई इमाम हो जाये और ये लोग उस के साथ बा जमाअत पढ़ ले।
और अगर दोनों में से बाद में पढ़ने पर कोई राज़ी ना हो तो इमाम एक गिरोह को दुश्मन के मुक़ाबिल करे और दूसरा इमाम के पीछे नमाज़ पढ़े, जब इमाम इस गिरोह के साथ एक रकअत पढ़ चुके यानी पहली रकअत के दूसरे सजदे से सर उठाये तो ये लोग दुश्मन के मुक़ाबिल चले जायें और जो लोग वहाँ थे वो चले आयें अब इनके साथ इमाम एक रकअत पढ़े और सलाम फेर दे मगर मुक़तदी सलाम ना फेरें बल्कि ये लोग दुश्मन के मुक़ाबिल चले जायें या यहीं अपनी नमाज़ पूरी कर के जायें और वो लोग आयें और एक रकअत बिना किरअत के पढ़ कर तशह्हुद के बाद सलाम फेरें और ये भी हो सकता है कि ये गिरोह यहाँ ना आये बल्कि वहीं अपनी नमाज़ पूरी कर ले और दूसरा गिरोह अगर नमाज़ पूरी कर चुका है तो अच्छा है वरना अब पूरी करे ख़्वाह वहीं या यहाँ आ कर और ये लोग किरअत के साथ अपनी एक रकअत पढ़ें और तशह्हुद के बाद सलाम फेरें, ये तरीक़ा दो रकअत वाली नमाज़ का है ख्वाह नमाज़ ही दो रकअत की हो जैसे फ़ज्र व ईद व जुम्आ या सफर की वजह से 4 की 2 हो गयी और 4 रकअत वाली नमाज़ हो तो इमाम हर गिरोह के साथ 2-2 रकअत पढ़े और मग़रिब में पहले गिरोह के साथ दो और दूसरे के साथ एक पढ़े, अगर पहले के साथ एक पढ़ी और दूसरे के साथ दो तो नमाज़ जाती रही।
ये सब अहकाम इस सूरत में हैं जब इमाम व मुक़तदी सब मुक़ीम हों या सब मुसाफ़िर या इमाम मुक़ीम है और मुक़तदी मुसाफ़िर और अगर इमाम मुसाफ़िर हो और मुक़तदी मुक़ीम तो इमाम एक गिरोह के साथ एक रकअत पढ़े और दूसरे के साथ एक पढ़ के सलाम फेरे फिर पहला गिरोह आये और तीन रकअत बिना किरअत के पढ़े फिर दूसरा गिरोह आये और तीन पढ़े, पहली में फ़ातिहा व सूरत पढ़े और अगर इमाम मुसाफ़िर है और मुक़तदी बाज़ मुक़ीम हैं और बाज़ मुसाफ़िर तो मुक़ीम, मुक़ीम के तरीके पर अमल करें और मुसाफ़िर मुसाफ़िर के।
एक रकअत के बाद दुश्मन के मुक़ाबिले जाने से मुराद पैदल जाना है सवारी पर जायेंगे तो नमाज़ जाती रहेगी।