दरिया हुसैन का है समंदर हुसैन का
प्यासों के वास्ते है ये लंगर हुसैन का
है आरज़ू वहाँ भी मिले दर हुसैन का
जन्नत में बन के जाऊँ मैं नौकर हुसैन का
सूरज ने अपने सर को अदब से झुका लिया
नेज़े पे जब बलंद हुआ सर हुसैन का
सब जानते हैं कितने बहादर हुसैन हैं
मौला अली के हाथ का ख़ंजर हुसैन हैं
राह-ए ख़ुदा में घर दिया और सर भी दे दिया
अब सोचिए कि कितने दिलावर हुसैन हैं
कोई यज़ीद कैसे भला सर उठाएगा
मौजूद रब के फ़ज़्ल से घर घर हुसैन हैं
चौदह सौ साल पहले गया था जो क़ाफ़िला
उस क़ाफ़िले के आज भी रहबर हुसैन हैं
ज़हरा के घर में लाल ओ जवाहिर हैं बेशुमार
जो सब से क़ीमती है वो गौहर हुसैन हैं
उस का भी हश्र होगा यज़ीदों के साथ साथ
जिस ने कहा कि मेरे बराबर हुसैन हैं
इब्न ए ज़ियाद का तो वहीं दम निकल गया
हुर ने कहा जो मेरा मुक़द्दर हुसैन हैं
नांत-ख़्वाँ: ज़ैन उल आबिदीन कानपुरी