नवासा याद आता है तो आँखें भीग जाती हैं
वो नाना याद आता है तो आँखें भीग जाती हैं
वो गलियाँ और वो मस्जिद जहाँ शब्बीर रहते थे मदीना याद आता है तो आखें भीग जाती हैं
मज़ार ए सरवर ए 'आलम से वो किस दिल से बिछड़े थे
बिछड़ना याद आता है तो आखें भीग जाती हैं
हज़ारों ख़त जहा से आल ए सरवर के लिए आए
वो कूफ़ा याद आता है तो आँखें भीग जाती हैं
जिसे सुनते ही हुर्र शब्बीर के क़दमों में आए थे
वो ख़ुत्बा याद आता है तो आँखें भीग जाती हैं
गले पर तीर जिस के हुरमला ज़ालिम ने मारा था
वो बच्चा याद आता है तो आँखें भीग जाती हैं
उठाते ही जिसे शब्बीर के सब बाल पक जाएँ
वो लाशा याद आता है तो आँखें भीग जाती हैं
उधर 'अब्बास के बाज़ू इधर नन्ही सकीना का तड़पना याद आता है तो आखें भीग जाती हैं
बहत्तर ज़ख़्म तीर ओ ख़ंजर ओ तलवार हर जानिब वो सज्दा याद आता है तो आखें भीग जाती हैं
बदन पर जिस जगह शब्बीर के घोड़े थे दौड़ाए
वो सहरा याद आता है तो आँखें भीग जाती हैं
बहत्तर ज़ख़्म लाखों ग़म बहत्तर घंटो का रोज़ा
वो रोज़ा याद आता है तो आँखें भीग जाती हैं
उठा कर जिस पे लाशे आप लाए अपने ख़ैमे तक
वो काँधा याद आता है तो आँखें भीग जाती हैं
तमाचे मारना ख़ैमे जलाना करना बे पर्दा
ये सारा याद आता है तो आँखें भीग जाती हैं
सिना की नोक पर जावेद पढ़ना आयत-ए-कुरआँ
वो पढ़ना याद आता है तो आँखें भीग जाती हैं
ना'त ख़्वोँ: मुहम्मद अली फ़ैज़ी