Ghusl ka tarika in Hindi | ग़ुस्ल करने का इस्लामिक तरीका हिंदी में


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Ghusl ka tarika in Hindi | ग़ुस्ल करने का इस्लामिक तरीका हिंदी में

गुस्ल में तीन फर्ज़ हैं यानी इन में से कोई एक भी छूट जाये तो गुस्ल नहीं होगा।

(1) कुल्ली करना : कुल्ली करने का ये मतलब नहीं कि मुँह में पानी लिया और उगल दिया बल्कि मुँह के अंदर हर पुरज़े को तर करना ज़रूरी है, ये कुल्ली फर्ज़ है लिहाज़ा अच्छी तरह तीन बार कुल्ली की जाये और अगर रोज़े से ना हो तो गरारा भी करें।
(2) नाक में पानी डालना : इस में भी खूब अच्छी तरह पानी डाला जाये कि अंदर नर्म हड्डी तक कोई जगह सूखी ना रह जाये। पानी को सूंघ कर ऊपर चढ़ायें और कोई चीज़ जमी हुई हो तो उसे साफ कर लें।
(3) तमाम ज़ाहिरी बदन पर पानी बहाना : सर के बाल से ले कर पाऊँ के नाखून तक का हर हिस्सा धुलना चाहिये। कई जगहें ऐसी हैं कि अगर एहतियात ना की जाये तो गुस्ल नहीं होगा लिहाज़ा इस में ज़्यादा एहतियात की ज़रूरत है।
सर के बाल अगर बड़े हों तो इसे धोने में ख्याल रखना ज़रूरी है कि कोई हिस्सा सूखा ना रह जाये। औरतों के लिये भी जड़ तक पानी पहुँचाना ज़रूरी है और अगर चोटी ज़्यादा टाइट गुन्दी हुई है कि पानी ना पहुँचे तो खोल कर पहुँचाना ज़रूरी है। नाक, कान वग़ैरह में ज़ेवर या हाथ में अँगूठी का वही हुक्म है जो वुज़ू के बाद में बयान किया गया यानी अगर ढीला है कि पानी चला जाता है तो हरकत देना ज़रूरी है कि पानी पहुँच जाये।
गुस्ल में दाढ़ी, भवें, पलकों के बाल सब का धोना और उस के नीचे चमड़े का धोना ज़रूरी है। कान का हर पुर्ज़ा और इस के सुराख के मुँह तक पानी पहुँचाना चाहिये। कानों के पीछे बाल हटा कर पानी पहुँचाना ज़रूरी है। हाथ उठा कर बगलों को धोना ज़रूरी है।
बाज़ू और पीठ का हर पहलू अच्छी तरह धोना ज़रूरी है। पेट को धोना, नाफ़ में पानी पहुँचाना और जिस्म का हर रोंगटा जड़ से नोक तक धोना ज़रूरी है। बैठ कर नहाने पर रान और जोड़ों पर अच्छी तरह पानी पहुँचाना ज़रूरी है। खड़े होकर नहाने पर दोनों सुरीन के मिलने की जगह को धोना ज़रूरी है। रानों की गोलियाँ, पिंडलियों की करवटें, शर्मगाह के वो हिस्से जो बगैर हरकत दिये नहीं धुलते और ऐसी तमाम जगहों को धोना ज़रूरी है। औरतों के लिये पिस्तान और नीचे पेट को अच्छी तरह धोना ज़रूरी है।

औरतों के लिये शर्मगाह को धोते वक़्त खास ख्याल रखना ज़रूरी है कि कोई हिस्सा सूखा ना रह जाये। बाहरी हिस्से को अच्छी तरह धोने के बाद अंदरूनी हिस्से में उंगली डालकर धोना मुस्तहब है। अगर हैज़ व निफ़ास से फारिग हो कर गुस्ल करती है तो किसी पुराने कपड़े से फर्जे दाखिल के अंदर से खून वग़ैरह का असर साफ़ कर लेना मुस्तहब है। बाल में गिरह पड़ जाये तो उसे खोल कर पानी बहाना ज़रूरी नहीं है।

अगर जिस्म में कहीं पट्टी बंधी है और नहाना ज़रूरी हो और पट्टी खोलने से नुक़सान होगा तो पट्टी के ऊपर मसहा कर ले। बाक़ी बदन पर पानी बहाये लेकिन ख्याल रहे कि पट्टी ने हद से ज़्यादा जगह को ना ढक रहा हो हाँ अगर बाज़ू में एक तरफ़ ज़ख्म है और पट्टी बाँधने के लिये उसे पूरे बाज़ू को गोलाई पर घुमा कर बाँधा गया है तो अगर पट्टी खोलना मुम्किन हो तो खोल कर पानी बहाये और अगर खोलने में तकलीफ़ हो या खोलने के बाद वैसा नहीं बँध पायेगा जैसा बंधा हुआ था तो मसहा कर लेना काफ़ी है, ज़ख्म की वजह से वो सही हिस्सा भी माफ़ हो जायेगा। अगर कोई हिस्सा है जहाँ पानी पहुँचाने से तकलीफ़ है तो उस पर भी मसहा काफ़ी है।
अगर ज़ुकाम है या आँख से पानी बहता है या और कोई बीमारी है और मालूम है कि सर से नहाने पर तकलीफ़ बढ़ जायेगी तो कुल्ली करे, नाक में पानी डाले और सर को छोड़ कर गले से नीचे नहा ले और सर का अच्छी तरह मसहा कर ले गुस्ल हो जायेगा।

गुस्ल की सुन्नतें | Ghusl Ki Sunnatain

गुस्ल की सुन्नतें | Ghusl Ki Sunnatain

  • गुस्ल की निय्यत करना।
  • पहले दोनों हाथ तीन मर्तबा गट्टों तक धोना।
  • इस्तिन्जे की जगह धोना, नजासत हो या ना हो।
  • बदन पर जहाँ कहीं नजासत हो उसे दूर करना।
  • नमाज़ की तरह वुज़ू करना और पाऊँ ना धोये, अगर ऊँची जगह बैठ कर नहाता है तो पाऊँ भी धो ले।
  • बदन पर तेल की तरह पानी मलना खास कर जाड़े के मौसम में।
  • तीन मर्तबा दाहिने काँधे पर पानी बहायें।
  • फिर बायें पर तीन बार।
  • सर पर और तमाम बदन पर तीन बार।
  • गुस्ल की जगह से अलग हो जाना और फिर पाऊँ धोना।
  • नहाते वक़्त क़िब्ला की तरफ़ मुँह कर के ना बैठें।
  • तमाम बदन पर हाथ फेरना।
  • तमाम बदन पर पानी मलना।
  • ऐसी जगह नहायें जहाँ कोई ना देखे और अगर ऐसा ना हो तो नाफ़ से लेकर घुटनों तक छुपा कर नहायें।
  • नहाते वक़्त किसी क़िस्म का कलाम ना करें।
  • कोई दुआ ना पढ़ें।

कुछ मसाइल | Ghusal Ke Masail

अगर गुस्ल खाने की छत ना हो या नंगे बदन नहाये तो कोई हर्ज नहीं बशर्ते कि एहतियात वाली जगह हो। औरतों को पर्दे का खास ख्याल रखना चाहिये और औरतों के लिये बैठ कर नहाना बेहतर है। अगर कोई बहते हुये पानी में नहाता है तो उस में थोड़ी देर ठहरने से तीन बार धोने, तरतीब और सारी सुन्नतें अदा हो जाती हैं, अलग से करने की ज़रूरत नहीं और अगर ठहरे हुये पानी में तालाब वग़ैरह में नहाता है तो तीन बार जिस्म को हरकत देने या तीन जगह बदलने से तीन बार धोने की सुन्नत अदा हो जायेगी।
अगर बहते पानी में वुज़ू किया तो बस थोड़ी देर तक आज़ा (पार्ट्स) को पानी में रखने से सुन्नत अदा हो जायेगी और अगर ठहरे पानी में किया तो हरकत देने से अदा हो जायेगी। वुज़ू या गुस्ल करने के लिये छोटे या बड़े के लिये पानी की कोई मिक़्दार मुअय्यन नहीं है यानी फिक्स नहीं है कि इतने उम्र का आदमी इतने लीटर्स से नहायेगा और इतने उम्र का इतने लीटर्स से बल्कि जितने में अच्छी तरह फराइज़ो सुनन अदा हो जायें, उतना पानी ज़रूरी है।

गुस्ल किन चीज़ों से फर्ज़ होता है?

यानी इंसान कब नापाक होता है? कब नहाना फर्ज़ हो जाता है? इसे अच्छी तरह समझना ज़रूरी है क्योंकि बात-बात पर लोग समझते हैं कि वो नापाक हो गये और अब नहाना होगा फिर नमाज़ें क़ज़ा कर देते हैं।

  • मनी का अपनी जगह से शहवत के साथ निकल कर उज़्व से निकलना गुस्ल को फर्ज़ कर देता है यानी मनी अगर शहवत के साथ (मज़े के साथ, जुनून के साथ) निकले यानी लज़्ज़त महसूस हो तो इससे गुस्ल फर्ज़ हो जायेगा।
  • अगर शहवत के साथ ना निकले बल्कि बोझ उठाने की वजह से या मेहनत की वजह से निकल जाये तो गुस्ल फर्ज़ नहीं हाँ वुज़ू ज़रूर टूट जायेगा।
  • अगर मनी अपनी जगह से शहवत के साथ चली और किसी ने अपने आले (आगे की शर्मगाह) को ज़ोर से पकड़ लिया या दबा दिया और मनी ना निकली फिर जब शहवत चली गयी तो निकली, इस से भी गुस्ल फर्ज़ हो जायेगा क्योंकि मनी अपनी जगह से शहवत के साथ जुदा हुई थी।
  • मनी के निकलने के बाद अगर ना सोया, ना पेशाब किया और ना 40 क़दम चला और नहा लिया और नमाज़ पढ़ ली फिर बाक़ी मनी निकली तो गुस्ल करे क्योंकि ये उसी मनी का हिस्सा माना जायेगा जो शहवत के साथ जुदा हुई थी और जो नमाज़ पढ़ी थी वो हो गयी, अब दोहराने की हाजत नहीं और अगर सोने, पेशाब करने या 40 क़दम चलने के बाद गुस्ल किया फिर मनी निकले तो ये पहली वाली का हिस्सा नहीं मानी जायेगी और गुस्ल करना ज़रूरी नहीं होगा।
  • पेशाब के वक़्त अगर मनी निकल जाये तो गुस्ल वाजिब नहीं। ऐसा मनी का पतला हो जाने से होता है इस से वुज़ू टूट जाता है।
  • एहतिलाम हुआ तो इस की चंद सूरतें हैं :
    • अगर सो कर उठा और कपड़े या बदन पर तरी पायी और मज़ी या मनी होने का यक़ीन है या शक़ है तो गुस्ल वाजिब हो जायेगा, चाहे ख्वाब देखना याद हो या ना हो।
    • अगर यक़ीन है कि ये तरी ना मनी है ना मज़ी बल्कि पेशाब या पसीना या वदी है तो गुस्ल फर्ज़ नहीं होगा अगरचे ख्वाब याद हो।
    • अगर यक़ीन है कि मनी नहीं लेकिन मज़ी होने पर शक है तो अब ख्वाब का एतबार होगा, अगर ख्वाब याद है तो गुस्ल फर्ज़ होगा वरना नहीं।
    • अगर एहतिलाम होना याद है मगर कपड़े या बदन पर कोई असर नहीं तो गुस्ल फर्ज़ नहीं।
    • अगर सोने से पहले आला (आगे की शर्मगाह) क़ाइम था यानी टुंडी की हालत में था (खड़ा था) चाहे वो गंदे खयालात या गंदी तस्वीरों या वीडियोज़ की वजह से हो और ऐसी हालत में सो गया और जागने पर असर देखा तो अब अगर गालिब गुमान है कि मनी नहीं बल्कि मज़ी पर ज़्यादा शक है और ख्वाब याद नहीं तो गुस्ल फर्ज़ नहीं होगा और अगर मनी होने का ज़्यादा शक है तो गुस्ल वाजिब है और अगर सोने से पहले टुंडी दब चुकी थी तो फिर पहली सूरत जो बयान हुई कि कपड़े या मनी होने का यक़ीन है या शक है तो गुस्ल वाजिब हो जायेगा, चाहे ख्वाब देखना याद हो या ना हो।
    • एहतिलाम की सूरतें जो बयान की गई उस का खुलासा ये है कि दो सूरतों में गुस्ल फर्ज़ नहीं होगा पहली ये कि जो तरी दिख रही है उस के बारे में यक़ीन है कि मनी या मज़ी नहीं बल्कि कुछ और है और दूसरी ये कि ख्वाब याद है और कोई असर मौजूद नहीं।
    • एक सूरत में ख्वाब के एतबार से माना जायेगा कि गुस्ल फर्ज़ हुआ या नहीं और वो ये है कि मनी के ना होने पर यक़ीन है और मज़ी होने पर शक है तो ख्वाब याद है तो गुस्ल फर्ज़ है वरना नहीं।
    • एक सूरत ये है कि जब कोई नॉरमल हालत में नहीं सोया बल्कि खास हालत में सोया यानी उसका आला क़ाइम था (तुंडी की हालत में था तो ऐसे में मस'अला थोड़ा अलग है और वो ये कि मज़ी पर ज़्यादा शक है और एहतिलाम याद नहीं तो गुस्ल फर्ज़ नहीं हालाँकि नॉरमल हालत में सोता तो मनी का शक होने से भी गुस्ल फर्ज़ हो जाता पर यहाँ मस'अला बदल जाता है और अगर ऐसी हालत में मनी पर ज़्यादा शक है तो गुस्ल फर्ज़ है।
    • ये मसाइल कई लोग नहीं जानते और हमने आसान लफ्ज़ों में समझाने की पूरी कोशिश की है, अगर इसे दो तीन मरतबा गौर से पढ़ा जाये तो अच्छी तरह समझ में आ जायेगा।
  • किसी को ख्वाब हुआ और मनी निकलने से पहले आँख खुल गई और अपने आले को पकड़ लिया जिस से मनी बाहर ना आयी फिर बाद में बाहर आयी तो गुस्ल फर्ज़ है।
  • नमाज़ के अन्दर शहवत के साथ मनी निकलती हुई मालूम हुई लेकिन ना निकली और नमाज़ के बाद निकली तो गुस्ल फर्ज़ हो जायेगा और जो नमाज़ पढ़ी वो हो गयी।
  • रात को एहतिलाम हुआ और जागा तो कपड़े पर कोई असर ना था फिर वुज़ू कर के नमाज़ पढ़ ली और उसके बाद मनी खारिज हुई तो गुस्ल फर्ज़ हो जायेगा और नमाज़ हो गयी।
  • अगर औरत को ख्वाब आया तो जब तक मनी फर्जे दाखिल से बाहर ना आये गुस्ल फर्ज़ नहीं।
  • लड़का एहतिलाम के साथ बालिग हुआ तो उस पर गुस्ल फर्ज़ है।
  • हश्फ़ा औरत के आगे या पीछे के मक़ाम में दाखिल हो जाये तो दोनों पर गुस्ल फर्ज़ हो जाता है। हश्फ़ा यानी ज़कर (मर्द के आले) का सर (आगे का हिस्सा) और सिर्फ़ दाखिल करने से ही गुस्ल फर्ज़ हो जायेगा चाहे शहवत हो या ना हो, मनी निकले या ना निकले। इस में एक शर्त ये है कि मर्दो औरत दोनों मुकल्लफ़ हों (यानी बालिग और आक़िल हों।)
  • अगर औरत ने अपनी शर्मगाह में उंगली डाली या कोई और चीज़ डाली तो जब तक इंज़ाल ना हो यानी मनी ना निकले गुस्ल फर्ज़ नहीं होगा।
  • अगर किसी जिन्न ने औरत से जिमा (Sex) किया, वैसे ये मस'अला बहुत कम पेश आता है लेकिन फिर भी इल्म में इज़ाफे के लिये बयान किया जा रहा है तो अगर वो जिन्न आदमी की शक्ल में आया तो हश्फ़ा (सरे ज़कर) के गायिब होते ही गुस्ल फर्ज़ हो जायेगा और अदर आदमी की शक्ल में ना हो तो जब तक औरत को इंज़ाल ना हो गुस्ल फर्ज़ नहीं होगा।
  • अगर किसी मर्द ने परी से जिमा किया और वो इंसानी शक्ल में नहीं थी तो जब तक इंज़ाल ना हो गुस्ल फर्ज़ नहीं होगा और अगर इंसानी शक्ल में है तो ज़कर का सर गायिब होने यानी अंदर दाखिल होने से गुस्ल फर्ज़ हो जायेगा।
  • जिमा के बाद औरत ने गुस्ल किया फिर उसकी शर्मगाह से मर्द की बक़िया मनी निकली तो गुस्ल फर्ज़ नहीं होगा हाँ वुज़ू टूट जायेगा।
  • औरत हैज़ से फारिग हुई, गुस्ल फर्ज़ हो जायेगा।
  • निफ़ास के खत्म होने से भी गुस्ल फर्ज़ हो जायेगा।
  • हैज़ व निफ़ास की तफ़सील आगे बयान की जायेगी।
  • जुम्आ, ईद, बक़र ईद के दिन और एहराम बांधते वक़्त नहाना सुन्नत है।
गुस्ल इन मौक़ों पर मुस्तहब है | Ghusl Ke 22 Mustahab

गुस्ल इन मौक़ों पर मुस्तहब है :

  • वुक़ूफे अराफात
  • वुक़ूफे मुज़्दलिफ़ा
  • हाज़िरी-ए- हरम
  • हाज़िरी-ए- सरकारे आज़म
  • तवाफ़
  • दुखूले मिना
  • और कंकरिया मारने के लिये तीनों दिन
  • शबे बराअत
  • शबे क़द्र
  • और अरफ़ा की रात
  • मज्लिसे मीलाद
  • और दीगर मजालिसे खैर की हाज़िरी के लिये
  • मुर्दा नहलाने के बाद
  • मज्नून का जुनून जाने के बाद
  • गसी के बाद
  • नशा जाते रहने के बाद
  • नया कपड़ा पहनने के बाद
  • तौबा करने के बाद
  • सफ़र से आने वाले के लिये
  • इस्तिहाज़ा का खून बन्द होने के बाद
  • नमाज़े कसूफो खुसूफ व इस्तिस्क़ा के लिये और खौफ़ व तारीकी और सख्त आँधी के लिये
  • और बदन पर नजासत लगी हो पर मालूम ना हो कि कहाँ लगी है।

हज करने वाले पर दसवी ज़िलहिज्जा को पाँच गुस्ल हैं: (1) वुक़ूफे मुज़्दलिफ़ा (2) दुखूले मिना (3) जमरा पर कंकरियाँ मारना (4) दुखूले मक्का और तवाफ़ जब कि तीन पिछली बातें भी दसवी को ही करे और अगर जुम्आ का दिन है तो गुस्ले जुम्आ भी। यूँ ही अगर अरफ़ा या ईद जुम्आ के दिन पड़े तो यहाँ वालों पर दो गुस्ल होंगे।

जिस पर चंद गुस्ल हों तो एक ही निय्यत से सब कर लिया, अदा हो गये और सब का सवाब मिलेगा।

अगर आप पर गुस्ल फर्ज़ हो गया और उसी दिन जुम्आ भी है तो आप पर दो गुस्ल हैं, एक तो गुस्ले जनाबत और दूसरा करने की ज़रूरत नहीं है बल्कि एक ही बार निय्यत कर लें तो सब अदा हो जायेंगे, ऐसा नहीं कि पहले गुस्ले जनाबत कर के उठें फिर जुम्आ का गुस्ल करने जायें और फिर आगे ईद भी उसी दिन हो तो ईद का गुस्ल भी करें।

जुनूब ने जुम्आ के दिन गुस्ले जनाबत किया और जुम्आ या ईद वग़ैरह की निय्यत भी कर ली तो सब अदा हो जायेगा। औरत को अगर नहाने के लिये पानी मोल लेना पड़े तो उस की क़ीमत शौहर के जिम्मे है बशर्ते कि वुज़ू या गुस्ल वाजिब हो या बदन से मैल दूर करने के लिये नहाये।

जिस पर गुस्ल फर्ज़ है उसे चाहिये कि नहाने में देर ना करे। सुनन अबू दाऊद की हदीस कि जिस घर में जुनूब हो (यानी जिस पर गुस्ले जनाबत फर्ज़ हो) उस घर में रहमत के फिरिश्ते नहीं आते। अगर नहाने में इतनी देर हो गयी कि नमाज़ का आखिर वक़्त आ चुका है तो नहाना फर्ज़ है, देर करने पर गुनाहगार होगा।

जो शख्स नापाक हो तो उसे खाना खाने के लिये वुज़ू कर लेना चाहिये। इसी तरह बीवी से जिमा करने के लिये भी वुज़ू कर लें या हाथ मुँह धो लें और कुल्ली कर लें, अगर इसी तरह खा पी लिया तो गुनाह नहीं लेकिन मकरूह है और ये मुह्ताजी लाता है। अगर बिना नहाये या बिना वुज़ू किये औरत से जिमा किया तो भी गुनाह नहीं लेकिन बेहतर कर लेना है और जिसे एहतिलाम हुआ हो वो बिना नहाये औरत के पास ना जाये।

रमज़ान की रात में अगर जुनूब हुआ तो बेहतर यही है कि फज्र से पहले नहा ले ताकि रोज़े का हर हिस्सा जनाबत (नापाकी) से खाली हो। अगर पहले ना नहा सका और दिन निकल आया और नमाज़ क़ज़ा हो गयी तो इस से रोज़े पर फर्क़ नहीं पड़ेगा। ऐसा करना रमज़ान के इलावा भी गुनाह है और रमज़ान में और ज़्यादा गुनाह है।

अगर फज्र से पहले ना नहा सके तो गरगरा कर ले और नाक में पानी डाल ले, ये दो काम फज्र से पहले कर ले फिर बाद में गुस्ल कर ले क्योंकि रोज़े की हालत में ये दोनों सही से नहीं होंगे और गरगरा करते वक़्त पानी अन्दर जा सकता है।

जिस पर गुस्ल फर्ज़ हो उस का मस्जिद में जाना, क़ुरआन शरीफ़ को छूना, या बिना छुये देख कर या ज़ुबानी पढ़ना, या आयात का लिखना, या तवाफ़ करना, या किसी ऐसी तावीज़ को छूना जिस में आयत लिखी हो, या ऐसी अँगूठी छूना या पहनना, ये सब हराम है। अगर क़ुरआने करीम जुज़दान में हो तो जुज़दान को हाथ लगाने में हर्ज नहीं है।

किसी ऐसे कपड़े से भी क़ुरआन को पकड़ सकते हैं जो ना अपना ताबे हो ना क़ुरआन का यानी वो कपड़ा ना क़ुरआन के साथ मुन्सलिक हो ना अपने कपड़ों के साथ जैसे अगर कुर्ते का दामन या आस्तीन, दुपट्टा और चादर जिसका एक कोना काँधे पर हो और दूसरे से क़ुरआन पकड़े तो ये हराम है क्योंकि ये सब इसके ताबे हैं और क़ुरआन मजीद की चोली क़ुरआन के ताबे है लिहाज़ा किसी तीसरे कपड़े की मदद से पकड़ सकते हैं जैसे रुमाल वग़ैरह।

क़ुरआन की आयात को नापाकी की हालत में सना कि निय्यत से पढ़ सकता है जैसे बिस्मिल्लाह पढ़ना और छींक आने पर अल्हम्दु लिल्लाह पढ़ना और किसी के इंतिक़ाल पर इन्ना लिल्लाहि वग़ैरह पढ़ना, इन में हर्ज नहीं लेकिन तिलावत की निय्यत से नहीं पढ़ सकता।

यूँ ही क़ुल का लफ्ज़ हटा कर सूरतुल इखलास वग़ैरह पढ़ सकता है जबकि सना की निय्यत हो और क़ुल के लफ्ज़ के साथ नहीं पढ़ सकता अगरचे निय्यत सना की हो क्योंकि अब क़ुरआन होना मुतअय्यन है।

बे वुज़ू शख्स का क़ुरआने मजीद या किसी आयत का छूना हराम है, ज़ुबानी याद हो तो पढ़ सकता है। अगर रूपये पर आयत लिखी हो तो, नापाक और बे-वुज़ू शख्स का उसे छूना हराम है। अगर थैली में हो तो थैली छूना जाइज़ है।

जिस बर्तन पर आयत लिखी हो उस का भी छूना जुनूब और बे-वुज़ू को हराम है। और इसे बर्तन का इस्तिमाल सब को मकरूह है, जबकि खास बा निय्यते शिफ़ा हो। क़ुरआन का तर्जुमा फारसी, उर्दू या किसी और ज़ुबान में हो तो उसे छूने और पढ़ने में क़ुरआने मजीद जैसा ही हुक्म है। अगर नापाक शख्स क़ुरआन की तरफ़ देखे तो कोई हर्ज नहीं अगरचे हुरूफ़ मालूम होते हों अगरचे मन में पढ़ता हो।

नापाक, बे-वुज़ू और हैज़ व निफ़ास वाली औरत को तफ़सीर, फिक़्ह और हदीस की किताब को छूना मकरूह है और इन किताबों में जहाँ आयत लिखी हो उसे छूना हराम है। इन सब को (यानी, नापाक, बे-वुज़ू....) तौरात, ज़बूर और इन्जील को पढ़ना छूना मकरूह है।

इन सब को दुरूद और दुआयें पढ़ने के लिये वुज़ू या कम से कम कुल्ली कर लेना बेहतर है अगर ना करे तो भी हर्ज नहीं। इन सब को अज़ान का जवाब देना जाइज़ है। क़ुरआन शरीफ़ के कागज़ वग़ैरह पुराने हो जायें कि पढ़ने के क़ाबिल ना रहें तो कफ़ना कर किसी ऐसी जगह दफ़न कर दें जहाँ किसी के पाऊँ पड़ने का एहतिमाल ना हो।

काफ़िर को क़ुरआने करीम ना दिया जाये और मुत्लक़न हुरूफ़ को उस से बचायें। अगर घर में किताबें हों तो क़ुरआन को तमाम किताबों के ऊपर रखना चाहिये। उसके नीचे तफ़सीर की किताबें फिर हदीस की और फिर दूसरी दीनी किताबें मर्तबे के मुताबिक़ रखें।

किताब के ऊपर कोई चीज़ ना रखी जाये चाहे क़लम दवात ही हो हत्ता कि वो सन्दूक़ जिस में किताब हो उसके ऊपर भी कोई चीज़ ना रखी जाये। मसाइल या दीनियत के अवराक़ (पन्नों) से पुड़िया बांधना या जिस दस्तर ख्वान पर अशआर वग़ैरह लिखें हो उसे काम में लाना या बिछौने पर कुछ लिखा हो उसे इस्तिमाल करना मना है।

अब हम पानी के बारे में ज़रूरी मसाइल बयान करेंगे कि किस पानी से वुज़ू और गुस्ल जाइज़ है और किस से नहीं। ये जान लें कि जिस पानी से वुज़ू जाइज़ होगा उस से गुस्ल भी जाइज़ होगा और जिस से वुज़ू जाइज़ नहीं तो गुस्ल भी जाइज़ नहीं। बारिश का पानी, नदी का, नाले, चश्मे, दरिया, समुंदर, कुँए और बर्फ़, ओले के पानी से वुज़ू हो जायेगा।

पानी में कोई चीज़ मिल गई जिससे उस का नाम बदल गया मस्लन नीम्बू, चीनी या पॉवडर वग़ैरह डाला जिसे अब शरबत कहा जाये तो उस से वुज़ू जाइज़ नहीं। पानी में कोई ऐसी चीज़ डाली जिससे मक़सद मैल काटना नहीं (यानी प्यूरीफाय करना करना) तो उस पानी से वुज़ू जाइज़ नहीं जैसे चाय, शोरबा (सीरवा), गुलाब और अर्क़ वग़ैरह।

अगर पानी में कोई ऐसी चीज़ डाल कर पकाई जिससे मक़सद मैल काटना था जैसे बेरी के पत्ते वग़ैरह तो वुज़ू जाइज़ है और अगर पानी की रिक़्क़त (यानी पतलापन) खत्म हो गया और पानी सत्तू की तरह गाढ़ा हो गया तो वुज़ू जाइज़ नहीं। अगर पानी में कोई ऐसी चीज़ मिल जाये जिस से पानी का पतलापन ना गया हो जैसे चूना, रेता या थोड़ी ज़ाफ़रान तो इस से वुज़ू जाइज़ है।

अगर दूध मिल गया तो अगर पानी ज़्यादा था, दूध थोड़ा सा था कि पानी पर गालिब ना आ सका तो वुज़ू जाइज़ है वरना नहीं। बहता पानी कि अगर तिनका डाले तो बहा ले जाये, पाक है और पाक करने वाला है और नजासत पड़ने से भी नापाक ना होगा जब तक कि पानी का रंग, बू (Smell) और मज़ा (Taste) ना बदल जाये।

अगर बहते पानी में इतनी नजासत है कि पानी का रंग, बू या मज़ा बदल गया तो पानी नापाक है। अब ये पाक तब होगा जब नजासत तह में चली जाये और पानी के अवसाफ़ ठीक हो जायें यानी रंग, बू और मज़ा अपनी हालत में आ जाये। बारिश में छत का पानी जो परनाले से गिरता है वो पाक है अगरचे छत पर नजासत पड़ी हो। जब तक नजासत से पानी में तगय्युर ना आ जाये पाक है।

छत पर नजासत है और बारिश हो रही है तो परनाले से गिरने वाला पानी नापाक नहीं लेकिन बारिश रुक जाने पर वो जमा हुआ पानी नापाक हो जायेगा। बरसात में नालियों में बहने वाला पानी पाक है जब तक कि नजासत से उस का रंग, बू या मज़ा बदल ना जाये। नाली का बहता पानी बारिश के बाद ठहर गया और नजासत दिखे तो वो नापाक है।

दस हाथ लम्बा और दस हाथ चौड़ा जो हौज़ हो उसे दह दर दह कहते हैं, ऐसे हौज़ में नजासत भी पड़ जाये तो पानी नापाक नहीं होगा जब तक कि रंग बू या मज़ा ना बदल जाये। लम्बाई और चौड़ाई 100 हाथ होनी चाहिये।

लम्बाई और चौड़ाई 100 हाथ होनी चाहिये। 20 हाथ लम्बा 5 हाथ चौड़ा भी (20x5)! दह दर दह कहलायेगा। इसी तरह 25 हाथ लम्बा 4 हाथ चौड़ा (25x4) भी 100 हाथ हो जायेगा यानी एरिया 100 हाथ होना चाहिये।

हौज़ अगर दह दर दह है यानी जिस की लम्बाई और चौड़ाई को ज़र्ब देने (गुना करने) पर 100 हाथ तक़रीबन (225 स्क़्वेयर फीट) हो जाये वो बड़ा हौज़ कहलाता है और ये बहते पानी के हुक्म में है यानी नजासत पड़ने से नापाक नहीं होगा जब तक कि नजासत से पानी का रंग, बू या मज़ा बदल ना जाये।

अगर हौज़ गोल है तो गोलाई साढ़े 35 हाथ होनी चाहिये। ये भी जान लें कि हौज़ के बड़ा होने का मतलब सिर्फ हौज़ का बड़ा होना नहीं बल्कि उस में मौजूद पानी को देखा जायेगा यानी पानी की बलाई (ऊपरी) सतह को देखेंगे कि वो सौ हाथ है या नहीं अगर हौज़ सौ हाथ है और पानी कम है तो वो दह दर दह नहीं।

पानी की गहराई इतनी होनी चाहिये कि बीच में कहीं से ज़मीन खुली हुई ना हो वरना ज़मीन खुल जाने पर पानी सौ हाथ से कम हो जायेगा और दह दर दह ना रहेगा। बड़े हौज़ में अगरचे नजासत पड़ने से पानी नापाक नहीं होगा लेकिन जान बूझ कर उस में नजासत डालना मना है।

बड़े हौज़ पर कई लोग जमा हो कर वुज़ू करें और पानी उस हौज़ में गिरायें तो कोई हर्ज नहीं लेकिन उस में कुल्ली करना या नाक साफ़ नहीं करना चाहिये, हौज़ से बाहर करें कि लोग इस से घिन करते हैं। गुस्ल करते वक़्त जो पानी जिस्म से गिरता है वो पाक है लेकिन उस से गुस्ल और वुज़ू जाइज़ नहीं। अगर पानी में (जो दह दर दह से कम हो) कोई बे वुज़ू शख्स बिना धोये अपने जिस्म के किसी ऐसे हिस्से को पानी में डाल दे जो वुज़ू में धोया जाता है तो पानी वुज़ू और गुस्ल के लायक़ नहीं रहेगा।

जिस पर गुस्ल फर्ज़ है उस के जिस्म का कोई भी हिस्सा पानी में पड़ गया तो पानी वुज़ू और गुस्ल के क़ाबिल ना रहा। अगर धुला हुआ हिस्सा पड़े तो हर्ज नहीं। अगर हाथ धुला हुआ है लेकिन फिर से धोने की निय्यत से डाला और ये धोना सवाब का काम है जैसे खाना खाने के लिये या वुज़ू के लिये तो पानी मुस्तमल हो जायेगा और अब वो वुज़ू के लाइक़ ना रहा।

अगर ज़रूरत के तहत डाला तो पानी मुस्तमल नहीं होगा मस्लन बड़ा बर्तन है कि झुका नहीं सकता और छोटा बर्तन नहीं तो डाल सकता है और इसका तरीक़ा वुज़ू के बयान में बता दिया गया है। अगर मुस्तमल पानी अच्छे पानी में मिल जाये जैसे नहाते वक़्त अगर छीन्टे पड़ जायें तो अगर अच्छा पानी ज़्यादा है तो वो वुज़ू और गुस्ल के लाइक़ रहेगा वरना नहीं। जिस बर्तन से नहा रहे हैं उस में 10 लीटर पानी है और कुछ क़तरे नहाते वक़्त उस में पड़ जायें तो पानी मुस्तमल नहीं होगा और अगर किसी तरह अच्छे पानी में उस से ज़्यादा मुस्तमल पानी मिल गया तो वो पानी वुज़ू और गुस्ल के लाइक़ ना रहेगा।

अगर पानी में हाथ पड़ गया और वो मुस्तमल हो गया, अब अगर उसे अच्छा बनाना है ताकि वुज़ू और गुस्ल के काम आ सके तो उस में से ज़्यादा पानी मिला देने से पाक हो जायेगा यानी अगर 5 लीटर पानी मुस्तमल था तो 5 लीटर से ज़्यादा अच्छा पानी मिला देने से वो काम का हो जायेगा। एक तरीक़ा ये है कि मुस्तमल पानी में अच्छा पानी डालता रहे हत्ता कि बर्तन भर कर बहने लगे तो वो पानी काम का हो जायेगा, और यूँ ही नापाक को भी पाक कर सकते हैं।

एक टंकी है जिस की केपेसिटी 1000 लीटर है और उस में 50 लीटर पानी है जो मुस्तमल हो गया है तो उसे पाक करने के लिये ये नहीं करेंगे कि एक तरफ से अच्छा पानी डालते रहेंगे ताकि भर कर बहने लगे क्योंकि इस में 950 लीटर से ज़्यादा पानी लाना पड़ेगा बल्कि यहाँ पहले वाला तरीक़ा अपनाया जायेगा कि 50 लीटर है तो 51 लीटर अच्छा पानी डाल दिया जाये।

अगर टंकी में 900 लीटर पानी है और मुस्तमल हो गया तो अब उसे पाक करने के लिये 901 लीटर पानी नहीं डालेंगे बल्कि दूसरा तरीक़ा अपनायेंगे यानी 100 लीटर से कुछ ज़्यादा डालेंगे ताकि भर कर बहने लगे। किसी दरख्त या फ़ल से निचोड़े गये पानी से वुज़ू जाइज़ नहीं।

जो पानी गर्म मुल्क में, गर्म मौसम में सोने चाँदी के इलावा किसी और धात के बर्तन में गर्म हुआ हो तो वो जब तक ठंडा ना हो जाये उस से वुज़ू और गुस्ल नहीं करना चाहिये और ना तो उस को पीना चाहिये, किसी भी तरह से बदन तक नहीं पहुँचना चाहिये। छोटे छोटे गढ़ों में पानी जमा हुआ हो और नजासत होने का मालूम ना हो तो उस से वुज़ू जाइज़ है। अगर कोई काफ़िर कहे कि ये पानी नापाक है तो उसकी बात नहीं मानी जायेगी, पानी पाक ही है (वो अपनी असली हालत में माना जायेगा।

नाबालिग का भरा हुआ पानी उसकी मिल्क हो जाता है (यानी उस की प्रॉपर्टी में दाखिल हो जाता है) लिहाज़ा उसे उसके माँ बाप के इलावा किसी के लिये इस्तिमाल में लाना जाइज़ नहीं अगर्चे वो इजाज़त दे दे क्योंकि नाबालिग अपनी प्रॉपर्टी से कोई चीज़ दूसरे को नहीं दे सकता। अगर किसी ने ऐसे पानी से वुज़ू कर लिया तो हो जायेगा पर गुनाहगार होगा। हज़रते अल्लामा मुफ्ती अमजद अ़ली आज़मी लिखते हैं कि इस मस'अले में मुअल्लिमीन (पढ़ाने वालों) को सबक़ लेना चाहिये कि अक्सर वो नाबालिग बच्चों से पानी भरवा कर काम में इस्तिमाल करते हैं, ये जाइज़ नहीं।

अगर किसी बालिग ने पानी भरा है तो उसकी इजाज़त के बिना इस्तिमाल करना हराम है। जो पानी नापाक हो उसे अपने इस्तिमाल में लाना जाइज़ नहीं और जानवरों को पिलाना भी जाइज़ नहीं। ऐसे पानी से गारा (दीवार खड़ी करने के लिये मसाला वग़ैरह) बनाने के काम में ला सकता है। पानी को अगर कोई इंसान झूटा कर दे तो वो नापाक नहीं होता अगर्चे आदमी नापाक हो या हैज़ो निफ़ास वाली औरत हो या काफ़िर हो सब का झूटा पाक है।

काफ़िर का झूटा पाक है पर उससे बचना चाहिये और उस से नफ़रत करनी चाहिये जैसे थूक, रीन्ठ और बलगम वग़ैरह पाक है पर लोग घिन करते हैं तो काफ़िर के झूटे से इनसे ज़्यादा घिन करनी चाहिये। किसी के मुँह से खून आ रहा हो और वो तुरंत पानी पिये तो वो पानी और बर्तन नापाक हो जायेगा लिहाज़ा चाहिये कि पहले मुँह को पाक करे फिर पानी पिये। मुँह दो तरह से पाक हो सकता है, एक तो ये कि पानी से धो कर खून के असर को खत्म कर ले और दूसरा ये कि कई बार थूके ताकि असर ज़ाइल हो जाये, ज़्यादा थूकने से भी तहारत मिल जायेगी जबकि असर बाक़ी ना रहे।

थूक में खून हो तो उसे घूँटना सख्त मना है। ये नापाक है और घूँटना गुनाह है। म'आज़ अल्लाह शराब पी कर अगर कोई फौरन पानी पिये तो पानी नापाक हो जायेगा और अगर रुक कर पिया तो थूक के साथ और अज्ज़ा मिल कर चले जायेंगे तो नापाक नहीं पर शराबी के झूटे से बचना चाहिये। शराबी की मूँछें बड़ी हों और पानी में लगती हों तो जब तक उन्हें पाक ना करे जो पानी पियेगा वो पानी और बर्तन दोनों नापाक हो जायेंगे।

मर्द को गैर औरत का और औरत को गैर मर्द का झूटा अगर मालूम हो कि फुलाँ या फुलानी का झूटा है तो बतौरे लज़्ज़त उस का खाना पीना मकरूह है लेकिन खाने या पानी में कराहत नहीं आयी और अगर मालूम ना हो तो या लज़्ज़त के लिये ना खाया पिया हो तो हरज नहीं बल्कि बाज़ सूरतों में बेहतर है जैसे बा-शरअ आलिम या पीर का झूटा तबर्रुक के तौर पर पीते हैं।

जिन जानवरों का गोश्त खाया जाता है वो चाहे चौपाये हों या परिंदे उन का झूटा पाक है जैसे गाय, बैल, भैंस, बकरी, कबूतर वग़ैरह। जो मुर्गी छूटी फिरती और गलीज़ पर मुँह मारती हो उस का झूटा मकरूह है और अगर बन्द रहती हो तो पाक है। गाय अगर गलीज़ पर मुँह मारती हो तो इसका झूटा मकरूह है और अगर मुँह पर नजासत लगी है और बिना पाक किये उसने पानी में मुँह डाल दिया तो पानी नापाक हो जायेगा।

उसका मुँह या तो जारी पानी में मुँह डालने से पाक होगा या फिर गैर जारी पानी में तीन जगह से पीने में। इसी तरह बैल, भैंस और बकरे नरों ने मादा का पेशाब सूँघा और नज़र से गाइब ना हुये और ना इतनी देर गुज़री कि तहारत हो जाये तो पानी में मुँह डाले तो पानी नापाक है। घोड़े का झूटा भी पाक है। सूअर, कुत्ता, शेर, चीता, गीधड़, भेड़िया, हाथी और दूसरे दरिन्दों का झूटा नापाक है।

कुत्ते ने बर्तन में मुँह डाला तो वो बर्तन नापाक हो जायेगा। अगर वो बर्तन धात या चीनी या चिकना है तो तीन बार धोने से पाक हो जायेगा और अगर चिकना नहीं मस्लन मिट्टी का है या चिकना है लेकिन दरार (Crack) है तो हर बार सुखा कर तीन बार धोना होगा सिर्फ धोने से पाक नहीं होगा। अगर मटके को कुत्ते ने ऊपर से चाटा तो अन्दर का पानी पाक है।

उड़ने वाले शिकारी जानवर जैसे बाज़ और चील वग़ैरह का झूटा मकरूह है और यही हुक्म कौऐ का है और अगर शिकारी परिंदों को शिकार के लिये रखा है तो उन का झूटा पाक है जब तक कि मुँह पर नजासत ना लगी हो। घर में रहने वाले जानवर जैसे बिल्ली, चूहा, छिपकली, साँप वग़ैरह का झूटा मकरूह है।

अगर बिल्ली किसी का हाथ चाटे तो चाहिये कि फौरन खींच ले और ना चाटने दे, फिर हाथ को धो ले और बगैर धोये नमाज़ पढ़ ली तो हो गई पर खिलाफ़े अवला यानी अच्छा नहीं है। बिल्ली ने चूहा खाया और बर्तन में मुँह डाल दिया तो नापाक हो गया और अगर ज़ुबान से साफ़ कर लिया कि खून का असर बाक़ी ना रहा तो पाक है। पानी में रहने वाले जानवरों का झूटा पाक है चाहे वो पानी में पैदा होते हों या बाहर।

गधे और खच्चर का झूटा मश्कूक है यानी इस में शक है कि उस से वुज़ू होगा या नहीं लिहाज़ा उस से वुज़ू नहीं हो सकता क्योंकि नापाकी (हदस) यक़ीनी है और पानी में शक है तो यक़ीन को शक से दूर नहीं किया जा सकता। जो झूटा पानी पाक है उस से वुज़ू और गुस्ल जाइज़ है और जो नापाक है उस से जाइज़ नहीं।

अगर मकरूह पानी है तो अच्छा पानी होते हुये उस से वुज़ू मकरूह है और अगर अच्छा पानी मौजूद नहीं तो उस से वुज़ू कर सकते हैं और खाने की चीज़ों में भी यही है कि मालदार के लिये मकरूह है और मुहताज के लिये नहीं।

अच्छा पानी नहीं है और मश्कूक पानी है तो उस से वुज़ू कर सकते हैं फिर तयम्मुम भी करे, बेहतर यही है कि पहले वुज़ू करे फिर तयम्मुम और अगर वुज़ू किया तयम्मुम ना किया या तयम्मुम किया वुज़ू ना किया तो नमाज़ ना होगी। मश्कूक झूटा खाना पीना नहीं चाहिये।

मश्कूक पानी में अगर अच्छा पानी मिल जाये तो अगर अच्छा पानी ज़्यादा है तो वो वुज़ू के लाइक़ हो गया वरना नहीं। जिस का झूटा नापाक है उस का पसीना और लुआब भी नापाक है और जिस का झूटा पाक है उस का पसीना और लुआब भी पाक है और जिस का झूटा मकरूह है उस का पसीना और लुआब भी मकरूह है।

गधे, खच्चर का पसीना अगर कपड़े पर लग जाये तो कपड़ा पाक है चाहे जितना ज़्यादा लगा हो। ये तो पानी का बयान हुआ, इस के बाद ये जानना भी ज़रूरी है कि नजासत की कौन-कौन सी क़िस्में हैं और उन के क्या अहकाम हैं।

अब हम नजासत के बारे में तफ़सीली बयान करेंगे कि कौन सी नजासत कितनी लग जाने पर नमाज़ नहीं पढ़ सकते और कितनी लग जाने पर पढ़ सकते हैं। नजासत दो तरह की होती हैं : एक नजासते गलीज़ा और एक नजासते खफ़ीफ़ा। हमने जिस तरह वुज़ू और गुस्ल की तफ़सील में बताया था कि एक छोटी नापाकी होती है और एक बड़ी नापाकी तो यहाँ भी कुछ ऐसा ही है। एक है छोटी नजासत यानी हल्की नजासत जिसका हुक्म हल्का है और एक है बड़ी नजासत यानी भारी नजासत जिस का हुक्म सख्त है।

जो बड़ी नजासत है यानी नजासते गलीज़ा उस का हुक्म ये है कि अगर एक दिरहम (के साइज़) से ज़्यादा लग जाये तो उसे पाक करना फर्ज़ है वरना नमाज़ नहीं होगी और अगर जान बूझ कर पढ़े तो गुनाहगार है और अगर नमाज़ को हल्का समझ कर ऐसा करे तो ये कुफ्र है।

अगर नजासते गलीज़ा एक दिरहम के बराबर हो तो पाक करना वाजिब है और बिना पाक किये नमाज़ पढ़ी तो आप जानते हैं कि वाजिब का मुक़ाबिल मकरूहे तहरीमी है लिहाज़ा नमाज़ दोहराना वाजिब हो जायेगी और अगर एक दिरहम से कम है तो पाक करना सुन्नत है और बिना पाक किये नमाज़ पढ़ने पर वो नमाज़ सुन्नत के खिलाफ़ होगी जिसका दोहराना ज़रूरी नहीं पर बेहतर है।

आसानी से यूँ समझें कि अगर जिस्म या कपड़े पर नजासत लगी हो तो बेहतर यही है कि उसे साफ़ कर के नमाज़ पढ़ें लेकिन मसाइल अपनी जगह हैं। किसी के कपड़े पर एक दिरहम से कम पखाना लग जाये तो वो बगैर धोये नमाज़ नहीं पढ़ेगा, हम जानते हैं लेकिन मसअला जानना ज़रूरी है कि किस नजासत के कितना लगने पर क्या हुक्म है ताकि मजबूरी की हालत में हम कहीं नमाज़ ना तर्क कर दें या मसअले का इल्म ना होने की वजह से कहीं ऐसा ना हो कि हम खुद को नापाक समझ कर नमाज़ ही ना पढ़ें या पढ़ लेने पर नमाज़ को फासिद समझ बैठें।

जब भी नजासत की बात आये तो पहले आपको ये देखना है कि नजासत कौन सी है, मतलब खफ़ीफा या गलीज़ा और ये जान लेने के बाद ये देखना है कि वो नजासत कितनी लगी है। पहले नजासत की क़िस्म मालूम होनी चाहिये फिर फैसला होगा कि कितनी लगने पर क्या हुक्म होगा लिहाज़ा पहले ये जानना ज़रूरी है कि कौन कौन सी नजासत खफीफ़ा है और कौन सी गलीज़ा।

नजासते गलीज़ा के बारे में आप जान चुके हैं कि एक दिरहम का साइज़ देखना होगा लेकिन इस में ये तफ़सील है कि अगर नजासत पतली ना हो बल्कि गाढ़ी हो जैसे पखाना वग़ैरह तो फिर नजासत का साइज़ नहीं बल्कि वज़न देखा जायेगा कि एक दिरहम के वज़न से ज़्यादा तो नहीं और अगर नजासत पतली है जैसे पेशाब, शराब वग़ैरह तो फिर साइज़ देखा जायेगा।

एक दिरहम का वज़न यहाँ पर साढ़े चार माशा होगा और साइज़ हथेली सीधी करने पर जितने हिस्से पर पानी रुक जाये उतना होगा जो कि यहाँ के रूपये के सिक्के के बराबर है (छोटा वाला सिक्का नहीं बल्कि बड़ा रूपये का पुराना सिक्का तक़रीबन वही साइज़ है।)

अब ज़ाहिर सी बात है कि आप सिक्का ले कर या नजासत को तराज़ू पर तौल कर नापेंगे नहीं लेकिन फिक़्ह में हर मुम्किन सूरत के हर पहलू और उसके हुक्म को बयान किया गया है जो कि ज़रूरी भी है लिहाज़ा यहाँ आप अंदाज़ा लगा सकते हैं और समझ सकते हैं कि अस्ल मसअला क्या है।

नजासते खफीफ़ा में दिरहम नहीं बल्कि ये देखा जाता है कि जिस हिस्से पर लगा है उस के एक चौथाई से ज़्यादा पर है या कम है या बराबर। एक चौथाई यानी 25% तो दामन में लगने पर दामन की एक चौथाई, आस्तीन पर लगे तो उसकी एक चौथाई और हाथ पर लगे तो उसकी एक चौथाई से कम होने पर नमाज़ हो जायेगी और अगर पूरी चौथाई पर लगी हो तो नमाज़ नहीं होगी।

ये जो नजासत में फर्क़ है और दिरहम और चौथाई का फर्क़ है ये तब है जब बात जिस्म या कपड़े की हो अगर पानी में कोई नजासत गिर जाये चाहे खफीफा हो या गलीज़ा तो ये नहीं देखा जायेगा कि दिरहम है या सिक्का है या फिर बर्तन का एक चौथाई है या नहीं बल्कि एक क़तरे से भी पूरा पानी नापाक हो जायेगा (अगर बड़ा हौज़ ना हो तो)

बड़े हौज़ की तफ़सील बयान हो चुकी है कि उस में नजासत पड़ने से पानी नापाक नहीं होता जब तक कि पानी का रंग, बू या मज़ा बदल ना जाये। अब आइये जानते हैं कि नजासते गलीज़ा कौन-कौन सी हैं और खफीफ़ा कौन-कौन सी। इंसान के बदन से ऐसी चीज़ निकले जिससे वुज़ू या गुस्ल वाजिब (ज़रूरी) हो जाये तो वो नजासते गलीज़ा है जैसे पेशाब, पखाना, मनी, मज़ी, वदी, बहता खून, पीप, भर मुँह क़य (उल्टी), हैज़, निफ़ास और इस्तिहाज़ा का खून।

दुखती आँखों से जो पानी निकले वो नजासते गलीज़ा है और पिस्तान या नाफ़ से भी दर्द की वजह से जो पानी निजले वो नजासते गलीज़ा है। बल्गम, नाक की रुतूबात वग़ैरह पाक हैं अगर्चे बीमारी की वजह से निकलें या इसी तरह।

दूध पीते लड़के और लड़की का पेशाब नजासते गलीज़ा है, ये जो आवाम में मशहूर है कि दूध पीने वाले बच्चे का पेशाब पाक होता है, ये गलत है। इसी तरह अगर बच्चे ने उल्टी की और वो भर मुँह थी तो नजासते गलीज़ा है।

खुश्की के हर जानवर का बहता खून नजासते गलीज़ा है। मुरदार जानवर का गोश्त और चर्बी भी नजासते गलीज़ा है (यानी ऐसा जानवर जिस में बहता खून होता है और बिना ज़िबहे शरई के मर जाये)

हलाल जानवर को अगर किसी बुत परस्त या मजूसी ने ज़िबह किया तो उस का गोश्त पोश्त सब नापाक हो जायेगा और अगर किसी हराम जानवर को शरई तरीक़े से मुसलमान ने ज़िबह किया तो गोश्त पाक हो जायेगा लेकिन खाना हराम ही रहेगा। खिन्ज़ीर को ज़िबह जिस तरह किया जाये वो नापाक ही रहेगा क्योंकि वो नजिसुल ऐन है।

हराम चौपाये जैसे कुत्ता, शेर, लौमड़ी, बिल्ली, गधा, चूहा, खच्चर, हाथी, सुअर का पखाना पेशाब और घोड़े की लीद नजासते गलीज़ा है। हलाल जानवर का पखाना जैसे गाय भैन्स का गोबर, ऊँट और बकरी की मेंगनी नजासते गलीज़ा है। जो परिंदे ऊँचा नहीं उड़ते मस्लन मुर्गी, बतख वग़ैरह की बीट नजासते गलीज़ा है। हर क़िस्म की शराब और नशा लाने वाली ताड़ी नजासते गलीज़ा है। साँप का पखाना पेशाब और जंगली मेंढक का खून जिन में बहता खून होता है अगरचे ज़िबह किये गये हों, नजासते गलीज़ा है।

सूअर का गोश्त, हड्डी, बाल सब नजासते गलीज़ा है। हलाल जानवरों का पेशाब नजासते खफीफ़ा है मस्लन गाय, बैल, भैंस, बकरी, ऊँट वग़ैरह। हराम परिंदे चाहे शिकारी हों या नहीं, उनकी बीट नजासते खफीफ़ा है जैसे कौआ, चील, बाज़ वग़ैरह। हलाल परिंदे जो ऊँचा उड़ते हैं उनकी बीट पाक है जैसे कबूतर, मैना वग़ैरह। नजासते गलीज़ा और खफीफ़ा मिल जाये तो कुल नजासते गलीज़ा हो जायेगी।

मछली और पानी के दीगर जानवरों का खून और मच्छर और खटमल का खून पाक है और गधे और खच्चर का पसीना और थूक भी पाक है। पेशाब की निहायत बारीक (सुई की नोक की तरह) छींटे कपड़े या जिस्म पर पड़ जायें तो कपड़ा और जिस्म पाक रहेगा और ऐसा कपड़ा अगर पानी में गिर जाये तो पानी भी पाक ही रहेगा। जो खून ज़ख्म में हो बहा ना हो वो पाक है। जेब में शीशी है और उस में पेशाब, खून या शराब है तो नमाज़ नहीं होगी।

अगर नजासत कपड़े या जिस्म पर एक जगह नहीं बल्कि दो तीन जगह लगी है और मिलाने पर एक दिरहम से ज़्यादा होती है तो धोना फर्ज़ होगा, बिना धोये नमाज़ नहीं होगी यही मजमूए का हुक्म नजासते खफीफ़ा में भी है। हराम जानवरों का दूध भी नजासत है अलबत्ता घोड़ी का दूध पाक है मगर खाना जाइज़ नहीं। चूहे की मेंगनी अगर गेहूँ में मिल कर पिस गयी तो आटा पाक है या तेल में गिर गयी तो तेल पाक है, हाँ अगर इतनी ज़्यादा है कि मज़े (Taste) में फर्क़ आ जाये तो नापाक है।

अगर पकी हुई रोटी में मिले तो आस-पास का थोड़ा सा हिस्सा हटा दें बाक़ी रोटी में कोई हर्ज नहीं। अगर पाक कपड़ा और नापाक कपड़ा आपस में लिपटा हुआ है और पाक कपड़ा नम हो जाये तो सिर्फ नमी आने की वजह से नापाक ना होगा जब तक कि पाक कपड़े पर नजासत का रंग या बू ज़ाहिर ना हो जाये। अगर ज़ाहिर हो गया तो नम होने से भी नापाक हो जायेगा। ये मसअला उस वक़्त का है जब कपड़ा पानी की वजह से नापाक हुआ हो वरना अगर पेशाब या शराब वग़ैरह नजासत लगी है तो फिर नम होने से भी नापाक हो जायेगा।

अगर नापाक कपड़ा पहन कर सोया या नापाक बिस्तर पर सोया और पसीना आया तो अगर पसीने से वो नापाक जगह भीग गयी फिर उस से तरी जिस्म पर लगी तो नापाक हो जायेगा वरना नहीं। रास्ते की कीचड़ पाक है जब तक उस का नापाक होना मालूम ना हो। अगर कपड़े या जिस्म पर लग जाये तो धो कर नमाज़ पढ़ ले और बगैर धोये पढ़नी पढ़े तो भी नमाज़ हो जायेगी, हाँ अगर नजिस होना मालूम है तो फिर धोना ज़रूरी है।

सड़क पर पानी छिड़का जा रहा हो और छीन्टे उड़ कर कपड़ों पर पड़े तो कपड़े पाक हैं, धो कर नमाज़ पढ़ना बेहतर है। आदमी की खाल अगर नाखून बराबर भी पानी में गिर जाये तो पानी नापाक हो जायेगा। कुत्ता अगर कपड़े या जिस्म से सट जाये तो नापाक ना होगा। अगर कुत्ते का जिस्म तर है यानी वो भीगा हुआ है तो भी जिस्म या कपड़े से सट जाने पर नापाकी का हुक्म नहीं है। हाँ अगर, उसके जिस्म पर नजासत लगी है और वो लग जाये तो नापाक हो जायेगा।

अगर कुत्ते की थूक लग जाये तो नापाक हो जायेगा। अगर कुत्ता आटे में मुँह डाल दे तो जितना तर हुआ उतना हटा दें बाक़ी पाक है। जो गोश्त सड़ गया यानी खराब हो गया और बदबू आने लगी उसको खाना हराम है लेकिन नजिस नहीं।