नमाज़ के मकरूहात का बयान | Namaz Ke Makroohat Kya Hai?


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नमाज़ के मकरूहात | Namaz Ke Makroohat

नमाज़ के मकरूहात का बयान | Namaz Ke Makroohat in Hindi

  • नमाज़ में कपड़े या दाढ़ी या बदन के साथ खेलना।
  • कपड़े को समेटना जैसे सज्दे में जाते वक्त कपड़े को आगे या पीछे से उठाना अगर्चे गर्द से बचने के लिए किया हो और अगर बिला वजह करे तो ज़्यादा मकरूह है।
  • कपड़ा लटकाना यानी सर या कंधे पर इस तरह कपड़ा डालना कि दोनो किनारे लटकते हो, ये सब मकरूहे तहरीमी है। अगर कुर्ते की आस्तीन में हाथ न डाले और पीठ की तरफ फेंक दे तो भी यही हुक़्म है।
  • शॉल या चादर के दोनों किनारे दोनों कंधे से लटक रहे हो तो ये मम्नूअ़ और मकरूहे तहरीमी है और किनारा दूसरे कंधे पर डाल दिया और लटक रहा है तो हर्ज नहीं। अगर एक ही कंधे पर इस तरह डाला कि एक किनारा आगे लटक रहा है और एक पीठ पर तो भी मकरूह है।
  • कोई आस्तीन आधी कलाई से ज़्यादा चढ़ी हुई है तो मकरूहे तहरीमी है।
  • दामन समेटे नमाज़ पढ़ना भी मकरूहे तहरीमी है चाहे पहले से चढ़ी हुई हो या नमाज़ के दरमियान चढ़ाई हो।
  • शिद्दत का पेशाब या पखाना मालूम होते वक़्त नमाज़ पढ़ना, मकरूहे तहरीमी है।
  • रीह का ग़लबा (हवा ख़ारिज होने का ग़लबा) हो तो नमाज़ पढ़ना मकरूहे तहरीमी है।
  • हदीस में है कि जब जमाअ़त क़ायम होने लगे और किसी को बैतुल खला की हाजत हो तो पहले बैतुल खला जाये। ये हदीस तिर्मिज़ी, अबु दाऊद और नसाई में मौजूद है। अगर नमाज़ से पहले इन चीज़ों का ग़लबा हो तो पहले क़ज़ा -ए- हाजत मुक़द्दम है अगर्चे जमाअ़त छूट जाये। अगर देखता है कि क़ज़ा -ए- हाजत में नमाज़ का वक़्त निकल जायेगा तो अब वक्त मुक़द्दम है यानी पहले नमाज़ पढ़े। अगर नमाज़ के दौरान ग़लबा हो तो नमाज़ तोड़ देना वाजिब है, इसी तरह पढ़ा तो गुनहगार होगा।
  • जूड़ा बांधे हुये नमाज़ पढ़ना मकरुहे तहरीमी है और नमाज़ के दरमियान जूड़ा बांधा तो नमाज़ फासिद हो जायेगी।
  • कंकरियाँ हटाना मकरूहे तहरीमी है जब कि सुन्नत तरीक़े से सजदा अदा हो जाता हो और अगर सुन्नत तरीक़े से ना हो सकेगा तो एक बार में हटाने की इजाज़त है और अगर वाजिब अदा ना होगा तो अब उसे हटाना वाजिब है चाहे एक बार से ज्यादा में हटाना पड़े।
  • उंगलियाँ चटकाना।
  • उंगलियो की क़ैंची बनाना यानी एक हाथ की उंगलियां दुसरे हाथ की उंगलियो में डालना मकरूहे तहरीमी है।
  • कमर पर हाथ रखना मकरूहे तहरीमी है। नमाज़ के इलावा भी कमर पर हाथ रखना मकरूहे तहरीमी है।
  • इधर-उधर मुँह फेर कर देखना मकरूहे तहरीमी है और अगर बिना मुँह फेरे सिर्फ़ कनखियो से इधर-उधर देखा तो मकरूहे तन्ज़ीही है और अगर नादिरन किसी गर्ज़े सहीह से देखा तो अस्लन हर्ज नहीं।
  • नमाज़ में आस्मान की तरफ निगाह करना भी मकरूहे तहरीमी है।
  • तशह्हुद या सजदो में कुत्ते की तरह बैठना यानी घुटनो को सीनो से मिला कर, दोनों हाथों को ज़मीन पर रख सूरीन के बल बैठना।
  • मर्द का सजदो में कलाइयों को बिछाना।
  • किसी शख्स के मुँह के सामने नमाज़ पढ़ना मकरूहे तहरीमी है यूँ ही दूसरे शख्स को नमाज़ी की तरफ मुँह करना भी नाजइज़ो गुनाह है। यानी अगर नमाज़ी की तरफ से ऐसा हो तो कराहत उस पर है वरना इस पर।
  • नमाज़ी और जो शख्स सामने है अगर दोनों के दरमियान फ़ासला हो तो भी नमाज़ी की तरफ मुँह करना मकरूह है जब कि दरमियान में कोई चीज़ हाइल ना हो। दरमियान में हाइल ऐसी चीज़ हो कि क़ियाम की हालत में भी किसी हिस्से का सामना ना होता हो वरना अगर कोई एक शख्स नमाज़ी के सामने पीठ कर के बैठ गया तो फिर उस के आगे वाला शख्स जब नमाज़ी की तरफ मुँह करेगा तो अगर नमाज़ी सजदे या क़ादा में है तो सामना ना होगा पर खड़े होने पर हो जायेगा और ये भी मकरूह है। नमाज़ पढ़ कर कुछ लोग खड़े हो जाते हैं और पीछे नमाज़ पढ़ने वालों की तरफ मुँह कर लेटे हैं कि सब सलाम फेरें और जाने का मौक़ा मिले या बार-बार मुड़ कर देखते हैं तो ये जाइज़ नहीं है।
  • कपड़े में इस तरह लिपट जाना कि हाथ भी बाहर ना निकले मकरूहे तहरीमी है और नमाज़ के इलावा भी इस तरह कपड़ों को नहीं लपेटना चाहिये।
  • एतिजार यानी इस तरह इमामा बांधना के पेच सर पर ना हो और बीच का हिस्सा खुला रहे मक़रूहे तहरीमी है और नमाज़ के इलावा भी ऐसा इमामा बांधना मक़रूह है।
  • नाक और मुँह को छुपाना।
  • और बे ज़रूरत खंखार निकालना, ये सब मक़रूहे तहरीमी है।
  • नमाज़ में जान बूझ कर जमाही लेना मक़रूहे तहरीमी और अपने आप आ जाये तो हर्ज नहीं पर रोकना मुस्तहब है और रोके से ना रुके तो होठ को दाँतो से दबाये और इस पर भी ना रुके तो दाहिना या बाया हाथ मुँह पर रख दे या आस्तीन से मूंह छुपा ले। क़ियाम में दाहिना हाथ मुँह पर रखे और दूसरे मौक़ों पर बायाँ हाथ।
  • जिस कपड़े पर जानदार की तस्वीर हो उसे पहन कर नमाज़ पढ़ना मक़रूहे तहरीमी है। नमाज़ के इलावा भी ऐसा कपड़ा पहनना नाजाइज़ है जिस पर जानदार की तस्वीर हो।
  • नमाज़ी के सर पर छत में या लटकी हुई तस्वीर हो
  • या सजदे की जगह पर हो तो इस से नमाज़ मकरूहे तहरीमी होगी।
  • यूँ ही नमाज़ी के आगे
  • या दाहिनी तरफ
  • या बायीं तरफ तस्वीर का होना मकरूहे तहरीमी है।
  • और पीठ के पीछे होना भी मकरूह है पर इन तीन सूरतों से कम है।
  • इन सब सूरतों में मकरूह उस वक़्त है जब तस्वीर दीवार या छत पर मन्क़ूश (Printed) हो, लटकी हुई हो या नसब की हुई हो और अगर फ़र्श पर है तो अगर वहाँ सजदा नहीं करता तो हर्ज नहीं। अगर तस्वीर गैरे जानदार की है जैसे पहाड़, दरिया वग़ैरह की तो हर्ज नहीं है। अगर तस्वीर ज़िल्लत की जगह हो यानी जहाँ लोग जूते चप्पल उतारते हों या फर्श पर के लोग पाऊँ से रौंदते हों या तकिये पर कि उसे रानो के नीचे रखते हों तो ऐसी तस्वीर का मकान में होने से हरज नहीं क्योंकि यहाँ उसकी ताज़ीम नहीं पायी जा रही बल्कि उसकी इहानत वाज़ेह है। ऐसी जगह तस्वीर के होने से नमाज़ में भी कराहत नहीं है जब तक उस पर सजदा ना किया जाये।

    अगर हाथ या किसी जगह बदन पर तस्वीर हो मगर कपड़ो से छुपी हुयी हो तो नमाज़ मक़रूह नहीं। अगर अँगूठी पर या दीवार पर आगे पीछे या दायें बायें इतनी छोटी तस्वीर हो कि अगर उसे ज़मीन पर रख कर खड़े हो कर देखें तो आज़ा (Parts) की तफ़सील मालूम ना हो तो ये मक़रूह नहीं। जानदार की तस्वीर का सर मिटा दिया हो या उस पर रौशनाई (Ink) फेर दी हो तो अब मक़रूह नहीं यानी। अगर चेहरे को मिटा दिया जाये तो ये काफी है, इसके बाद नमाज़ मक़रूह नहीं। जेब में अगर तस्वीर हो तो नमाज़ में हर्ज नहीं। तस्वीर वाला कपड़ा पहनना और उसके ऊपर कोई और कपड़ा पहन लिया कि तस्वीर छुप गयी तो अब नमाज़ मक़रूह नहीं। ये अहकाम तो तस्वीर के रखने के हैं और ज़रूरत और इहानत की जगह होना अलग है। अब रहा बनवाना या बनाना तो ये हराम है।

  • उल्टा क़ुरान पढ़ना मक़रूहे तहरीमी है।
  • किसी वाजिब को तर्क करना मक़रूहे तहरीमी है मस्लन रुकू व सुजूद में पीठ सीधी ना करना यूँ ही क़ौमा और जलसा में सीधा होने से पहले सजदे में चले जाना।
  • क़ियाम के इलावा किसी और मौक़े पर क़ुरान मजीद पढ़ना।
  • रुकूअ़ में क़िरअत खत्म करना।
  • इमाम से पहले मुक़्तदी का रुकूअ़ व सुजूद में जाना और इमाम से पहले सर उठाना।
  • सिर्फ़ पजामा या तहबंद पहन कर नमाज़ पढ़ी और कुर्ता या चादर मौजूद है तो नमाज़ मक़रूहे तहरीमी होगी और अगर कोई दूसरा कपड़ा नहीं तो माफ़ है।
  • इमाम अगर किसी आने वाले के लिये (उसकी खातिर) नमाज़ को तूल दे यानी लम्बा करे तो ये मकरूहे तहरीमी है।
  • जल्दी में सफ़ के पीछे ही अल्लाहु अकबर कह कर शामिल हो गया फिर सफ़ में शामिल हुआ तो मकरूहे तहरीमी है।
  • ऐसी ज़मीन पर जिस पर नाजाइज़ क़ब्ज़ा किया गया हो या
  • पराये खेत में जिस में खेती हो या जोते हुये खेत नमाज़ पढ़ना मकरूहे तहरीमी है।
  • क़ब्र का सामने होना यानी अगर क़ब्र और नमाज़ी के दरमियान कोई चीज़ हाइल ना हो तो मकरूहे तहरीमी है।
  • काफिरों के इबादत खानों में नमाज़ पढ़ना मकरूहे तहरीमी है और वहाँ ऐसे जाना भी मम्नूअ़ है। ये शयातीन की जगह है।
  • उल्टा कपड़ा पहन कर या ओढ़ कर नमाज़ मकरूहे तहरीमी है।
  • गले के पास बटनो को खुला छोड़ देना कि सीना नज़र आये मकरूहे तहरीमी है और अगर नीचे कोई कपड़ा है मस्लन कुर्ता वगैरह और ऊपर से किसी कपड़े का बटन खुला हुआ है तो मकरूहे तंज़ीही है।