नमाज़ के मकरूहात तंज़ीही | Namaz Ke Makroohat Tanzihi
- सज्दा या रुकूअ़ में बिला ज़रूरत तीन बार से कम तस्बीह पढ़ना (हाँ वक़्त की कमी या गाड़ी छूट जाने के खौफ़ से या फिर मुक़्तदी का इमाम की इत्तिबा के लिये तीन से कम पढ़ने में हर्ज नहीं)
- काम काज के कपडों पर नमाज़ पढ़ना मकरूहे तंज़ीही है जब कि दूसरे कपड़े मौजूद हो वरना मकरूह नही।
- मुँह में कुछ लिये नमाज़ पढ़ना या पढ़ाना मकरूह है जब कि क़िरअत हो जाती हो और अगर क़िरअत नही हो पाती मस्लन आवाज़ नही निकलती या ऐसे अल्फ़ाज़ निकलते हैं जो क़ुरआन नहीं हैं तो नमाज़ फ़ासिद हो जायेगी।
- सुस्ती की वजह से या गर्मी लगती है तो बिना टोपी के नमाज़ पढ़ना मकरूहे तंज़ीही है और अगर नमाज़ को हक़ीर समझ कर मआज़ अल्लाह कोई बिना टोपी के नमाज़ पढ़ता है कि नमाज़ कोई ऐसी अहम चीज़ नही कि टोपी या इमामा पहना जाये तो ये कुफ़्र है क्योंकि उस ने नमाज़ जैसी अफ़ज़ल इबादत को हक़ीर समझा और अगर खुशु व खुज़ू यानी नमाज़ में सुकून और ज़्यादा इत्मिनान और तवज्जो के लिये बिना टोपी नमाज़ पढ़ी तो मुस्तहब है।
- पेशानी से घास या धूल वग़ैरह छुड़ाना मकरूह है जब कि इनकी वजह से नमाज़ में तशवीश ना हो और अगर तकब्बुर की वजह से हो तो मकरूहे तहरीमी है और अगर तक्लीफ होती हो या ख्याल बट जाता हो तो हर्ज नही और नमाज़ के बाद छुड़ाने में तो मुत्लकन कोई मुज़ाइका नहीं बल्कि छुड़ा लेनी चाहिये की रिया (दिखावे का ख्याल) ना आये।
- नमाज़ में उंगलियो पर आयतों, सूरतों या तस्बीहात को गिनना मक़रूह है चाहे नमाज़ फ़र्ज़ हो या नफ्ल दिल में ख्याल रखना या उंगलियो को दबाना कि उंगलियाँ अपनी जगह पर रहें तो इस में हर्ज नहीं पर खिलाफ़े अवला है कि दिल दूसरी तरफ़ मुतवज्जेह होगा और जुबान से गिनने पर नमाज़ फ़ासिद हो जायेगी।
- नमाज़ में बिला उज़्र चार जानू बैठना मक़रूह है और अगर उज़्र हो तो हर्ज नहीं और नमाज़ के इलावा बैठने में कोई हर्ज नहीं।
- दामन या आस्तीन से खुद को हवा पहुँचाना मक़रूह है जबकि एक दो बार हो।
- कपड़े का हद से बड़ा हो कर लटकना यानी आस्तीन का उंगलियो से नीचे होना या टखने से नीचे तक कपड़े का होना या इमामा ऐसा कि बैठने में दबे।
- अंगड़ाई लेना।
- जान बूझकर खाँसना या
- खंखारना मकरूह है और अगर तबियत दफ़ा कर रही है तो हर्ज नहीं।
- नमाज़ में थूकना मक़रूह है।
- तन्हा नमाज़ पढ़ने वाले को सफ़ में खड़े होना मक़रूह है क्योंकि वो रुकूअ़ सजदे वग़ैरह अपने मुताबिक़ करेगा जो लोगों के खिलाफ़ होगा।
- मुक़्तदी का सफ़ों के पीछे अकेले खड़े होना मकरूह है जब कि सफ़ में जगह मौजूद हो और अगर जगह ना हो तो मकरूह नहीं।
- फ़र्ज़ की एक रकअ़त में किसी आयत को बार-बार पढ़ना मकरूह है जबकि इख्तियार की हालत में हो और अगर उज़्र हो तो मकरूह नहीं।
- एक सूरत को बार-बार पढ़ना भी मकरूह है।
- सजदे में जाते वक़्त घुटने से पहले हाथ रखना।
- और उठते वक़्त हाथ से पहले घुटने उठाना बिला उज़्र मक़रूह है।
- रुकू में सर को पुश्त से ऊँचा नीचा करना मकरूह है।
- बिस्मिल्लाह, तअ़व्वुज़ और आमीन ज़ोर से कहना मकरूह है।
- अज़कारे नमाज़ को उनकी जगह से हटा कर पढ़ना मक़रूह है।
- बगैर उज़्र दीवार या असा से टेक लगाना मक़रूह है और अगर उज़्र हो तो हर्ज नहीं बल्कि फ़र्ज़ो वाजिब और सुन्नते फ़ज्र में इस पर टेक लगा कर क़ियाम फ़र्ज़ होगा जबकि बगैर इस के क़ियाम ना हो सके।
- रुकू में घुटनो पर और
- सजदे में ज़मीन पर हाथ ना रखना मक़रूह है।
- इमामे को सर से उतार कर ज़मीन पर रख देना या
- ज़मीन से उठा कर सर पर रख लेना नमाज़ को फ़ासिद नहीं करता पर मकरूह है।
- आस्तीन को बिछा कर उस के ऊपर सजदा करना कि धूल गर्द से बच जाये मकरूह है और अगर तकब्बुरन किया तो मकरूहे तहरीमी है और गर्मी से बचने के लिये कपड़े पर सजदा किया तो हरज नहीं। आयते रहमत पर सवाल करना और अज़ाब वाली आयत पर पनाह माँगना मुन्फ़ररिद नफ्ल पढ़ने वाले के लिये जाइज़ है और
- इमाम और मुक़्तदी के लिये मकरूह।
- दाहिने बायें झूमना मकरूह है और तरावीह में यानी कभी एक पाऊँ पर ज़ोर दिया कभी दूसरे पर ये सुन्नत है।
- उठते वक़्त आगे पीछे पाऊँ उठाना मकरूह है और सजदे में जाते वक़्त दायीं तरफ और सजदे से उठते वक़्त बायीं तरफ़ ज़ोर देना मुस्तहब है।
- नमाज़ में आँखें बंद करना मकरूह है और अगर आँखें खुली रखने पर ध्यान इधर उधर जाता हो और बंद रखने में ज़्यादा तवज्जो मिलती हो तो हर्ज नहीं बल्कि आँखें बंद रखना बेहतर है।
- सजदा वग़ैरह में उंगलियो को क़िब्ला से फेर देना मकरूह है। जूँ या मच्छर अगर तक्लीफ़ पहुँचाते हों तो पकड़ कर मार देने में हर्ज नहीं जबकि अ़मले कसीर ना हो यानी ऐसा अ़मल ना करना पड़े कि दूर से कोई देखे तो समझ जाये कि आप नमाज़ में नहीं हैं।
- इमाम को तन्हा मेहराब में खड़ा होना मकरूह है और अगर बाहर खड़ा हुआ सजदा मेहराब में किया या वो तन्हा ना हो कुछ मुक़्तदी भी उस के साथ मेहराब में हों तो हर्ज नहीं और यूँ ही अगर मुक़्तदियों पर मस्जिद में जगह तंग हो तो भी मेहराब में खड़ा होना मकरूह नहीं।
- इमाम को दरों में खड़ा होना भी मकरूह है।
- इमाम (जो पहली जमाअ़त कराये उस) का कोने में या एक जानिब खड़ा होना मकरूह है, उसके लिये सुन्नत ये है कि बीच में खड़ा हो और इसी का नाम मेहराब है ख्वाह वहाँ तलक़ मारूफ हो या ना हो और अगर बीच छोड़ कर कहीं और खड़ा हुआ अगर्चे उसकी दोनो तरफ़ सफ़ के बराबर हिस्से हो तो मकरूह है।
- इमाम का तन्हा बुलंदी पर खड़ा होना मकरूह है और बुलंद जगह की मिक़्दार ये कि देखने से ऊँचाई ज़ाहिर हो और अगर ये काम हो तो मकरूहे तंज़ीही है वरना तहरीमी।
- इमाम नीचे और मुक़्तदी बुलंद मक़ाम पर हो ये भी मकरूह और खिलाफ़े सुन्नत है।
- काबा-ए-मुअ़ज़्ज़मा और मस्जिद की छत पर नमाज़ पढ़ना मकरूह है कि ये तर्के ताज़ीम है।
- मस्जिद में अपने लिये कोई जगह खास कर लेना कि वहीं नमाज़ पढ़नी है मकरूह है। कोई शख्स खड़ा या बैठा बातें कर रहा है तो उस के पीछे नमाज़ पढ़ना मकरूह नहीं है जब कि बातों से दिल बटने का खौफ़ ना हो।
- तलवार और कमान वग़ैरह हमाइल किये हुये नमाज़ पढ़ना मकरूह है जबकि इनकी हरकत से दिल बटे वरना हर्ज नहीं।
- जलती हुयी आग नमाज़ी के सामने हो तो ये मकरूह है और अगर शमा या चिराग हो तो हर्ज नहीं।
- हाथ में कोई ऐसा माल हो जिस के रोकने की ज़रूरत होती है तो उसे लिये नमाज़ पढ़ना मकरूह है मगर जब ऐसी जगह हो की बगैर इस के हिफाज़त ना-मुमकिन हो।
- नमाज़ी के सामने पेशाब या पाखाना वग़ैरह नजासत होना या उस जगह का मिज़न्ना-ए-नजासत (यानी जिस जगह नजासत का शुब्हा हो) होना मकरूह है।
- सजदे में रान को पेट से चिपका देना मकरूह है।
- हाथ से बगैर उज़्र मक्खी उड़ाना मकरूह है।
- औरत को चाहिये कि सजदे में रान से पेट को मिला दे यानी सिमट कर सजदा करे। क़ालीन और बिछौनो पर नमाज़ पढ़ने में हर्ज नहीं जब कि इतने नर्म और मोटे ना हों कि सजदे में पेशानी ना जम सके। अगर पेशानी ना जम सके तो फिर उस पर नमाज़ नहीं होगी।
- ऐसी चीज़ के सामने नमाज़ पढ़ना मकरूह है जो दिल को मशगूल रखे यानी दिल में उस का सामने होने की वजह से ख्याल आता रहे मस्लन ज़ीनत या लहवो लईब (खेल कूद) वग़ैरह।
- नमाज़ के लिये दौड़ना मकरूह है।
- आम रास्ते में
- या कूड़ा डालने की जगह
- या जहाँ जानवर ज़िबह किया जाता हो
- क़ब्रिस्तान
- गुस्ल खाना
- हम्माम
- नाला
- मवेशी खाना खास कर जहाँ ऊँट बाँधे जाते हों
- अस्तबल
- पखाना की छत और
- सेहरा में बिना कुछ सामने रखे कि जब खौफ़ हो लोगों के गुज़रने का, इन तमाम जगहों पर नमाज़ मकरूह है।
क़ब्र और नमाज़ी के दरमियान सुतरा हो तो हर्ज नहीं और दायें बायें क़ब्र हो तो भी हर्ज नहीं। मकरूह उस वक़्त है जब क़ब्र और नमाज़ी के दरमियान कोई शय हाइल ना हो। एक ज़मीन काफ़िर की है और एक मुसलमान की तो मुसलमान की ज़मीन पर नमाज़ पढ़े। अगर मुसलमान की ज़मीन पर खेती हो तो रास्ते पर पढ़े, काफ़िर की ज़मीन पर ना पढ़े। खेती वाली ज़मीन पर उस वक़्त पढ़ सकता है जब उस के मालिक से दोस्ती या लगाव हो कि नागवार नहीं गुज़रेगा। साँप, बिच्छू वग़ैरह को मारने के लिये नमाज़ तोड़ना जाइज़ है मगर जब सहीह अंदेशा हो कि तक्लीफ़ पहुँचायेगा। अगर कोई जानवर भाग गया तो उस को पकड़ने के लिये या बकरियों पर भेड़ियों के हमला करने के खौफ़ से नमाज़ तोड़ देना जाइज़ है। अपने या पराये के एक दिरहम के नुक़्सान का खौफ़ हो या दूध उबल जायेगा या तरकारी रोटी वग़ैरह जलने का खौफ़ हो या एक दिरहम की कोई चीज़ चोर उचका ले भागा तो इन सूरतो में नमाज़ तोड़ देने की इजाज़त है।
पखाना पेशाब मालूम हुआ (शिद्दत नहीं है) या कपड़े या बदन में इतनी नजासत देखी जिससे नमाज़ हो जाती है या किसी अजनबी औरत ने छू दिया तो नमाज़ तोड़ देना मुस्तहब है बशर्ते की जमाअ़त का वक़्त ना निकल जाये और अगर पखाना या पेशाब की शिद्दत हो तो नमाज़ तोड़ देना वाजिब है और जमाअ़त के वक़्त का भी ख्याल नहीं किया जायेगा अलबत्ता नमाज़ के वक़्त के जाने का लिहाज़ ज़रूर किया जायेगा यानी पखाना पेशाब की शिद्दत है तो उस के लिये जमाअ़त को छोड़ सकता है पर अगर नमाज़ का वक़्त ही खत्म हो जायेगा तो अब नमाज़ पढ़ी जायेगी। अगर कोई मुसीबत ज़दा फ़रियाद कर रहा हो, नमाज़ी को पुकार रहा हो या मुत्लक़न किसी शख्स को, या कोई डूब रहा हो या कोई आग से जल जायेगा या कोई अंधा कुएँ में गिर जायेगा तो अगर नमाज़ी इस पर क़ादिर है कि उसे बचा सकता है तो नमाज़ तोड़ देना वाजिब है।
माँ बाप, दादा दादी वग़ैरह के महज़ बुलाने से नमाज़ तोड़ देना जाइज़ नहीं अलबत्ता अगर उनका पुकारना भी किसी मुसीबत के लिये हो जैसा कि ऊपर हम ने लिखा तो फिर नमाज़ तोड़ दे और ये हुक्म फ़र्ज़ नमाज़ का है और अगर नफ्ल नमाज़ पढ़ रहा है और उनको मालूम है कि नमाज़ में है तो उनके मामूली बुलाने पर नमाज़ ना तोड़े और अगर उनको मालूम नहीं कि नमाज़ पढ़ता है और अगर पुकारा तो नमाज़ तोड़ दे और जवाब दे अगर्चे मामूली तौर पर बुलायें।