नीज़ इस के लिये एक मुजर्रब नमाज़ सलातुल असरार है जो इमाम अबुल हसन नूरुद्दीन अली बिन जरीर लख्मी शतनौफी बहजतुल असरार में और मुल्ला अली क़ारी व शैख अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहेलवी रदिअल्लाहु तआला अन्हुम हुज़ूर सय्यिदुना गौसे आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं|
इस कि तरकीब ये है कि बाद नमाज़े मगरिब सुन्नतें पढ़ कर दो रकाअत नमाज़ नफ़्ल पढ़े और बेहतर ये है कि अल्हम्दु के बाद हर रकाअत में ग्यारह-ग्यारह बार क़ुल हुवल्लाह पढ़े, सलाम के बाद अल्लाह अज़्ज़वजल की हम्द व सना करे फ़िर नबी ﷺ पर ग्यारह बार दुरूद व सलाम अर्ज़ करे और ग्यारह बार ये कहे
یَا رَسُوْلَ اللہ یَا نَبِیَّ اللہ اَغِثْنِیْ وَامْدُدْنِیْ فِیْ قَضَاءِ حَاجَتِیْ یَا قَاضِیَ الْحَاجَاتِ
फिर ईराक़ की जानिब ग्यारह क़दम चले, हर कदम पर ये कहे: یَا غَوْثَ الثَّـقَـلَیْنِ وَ یَا کَرِیْمَ الطَّرَفَیْنِ اَغِثْنِیْ وَامْدُدْنِیْ فِیْ قَضَاءِ حَاجَتِیْ یَا قَاضِیَ الْحَاجَاتِ
अबू दाऊद व तिर्मज़ी व इब्ने माजा और इब्ने हिब्बान अपनी सहीह में अबू बकर सिद्दीक़ रदिअल्लाहु त'आला अन्हु से रावी कि हुज़ूर फरमाते हैं
जब कोई बन्दा गुनाह करे फिर वुज़ू कर के नमाज़ पढ़े अस्तग़फ़ार करे, अल्लाह त'आला उस के गुनाह बख्स देगा, फिर ये आयत पढ़े: وَ اِذَا فَعَلُوْا فَاحِشَةً قَالُوْا وَجَدْنَا عَلَیْهَاۤ اٰبَآءَنَا وَ اللّٰهُ اَمَرَنَا بِهَاؕ قُلْ اِنَّ اللّٰهَ لَا یَاْمُرُ بِالْفَحْشَآءِؕ-اَتَقُوْلُوْنَ عَلَى اللّٰهِ مَا لَا تَعْلَمُوْنَ
जिन्होंने बेहयाई का कोई काम किया या अपनी जान पर ज़ुल्म किया फिर अल्लाह अज़्ज़वजल को याद किया और अपने गुनाहों की बख्शिश माँगी और कौन गुनाह बख्शे अल्लाह अज़्ज़वजल के सिवा और अपने किये पर दानिस्ता हट ना की हालाँकि वो जानते हैं।
सलातुल रगाइब कि रजब की पहली शबे जुम्आ और शाबान की पंद्रहवी शब और शबे क़द्र में जमाअत के साथ नफ़्ल नमाज़ बाज़ लोग अदा करते हैं, फुकहा इसे नाजाइज़ व मकरूह व बिदअत कहते हैं और लोग इस बारे में जो हदीस बयान करते हैं मुहद्दिसीन उसे मौज़ू बताते हैं। लेकिन अजिल्ला -ए- अकाबिर औलिया से बा असानीदे सहीहा मरवी है, तो इस के मना में गुलू ना चाहिये और अगर जमाअत में तीन से ज़ाइद मुक़तदी न हो जब तो अस्लन कोई हर्ज नहीं।