शीशे के सामने नमाज़ पढ़ना | Shishe Ke Samne Namaz Padhna Kaisa


By ilmnoohai.com   ·  
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सवाल:

मसाजिद में दरवाज़ों के साथ शीशे लगे होते हैं। जिन में नमाज़ के दौरान नमाज़ी को अपना अक्स नज़र आता है। आया इस तरह नमाज़ दुरुस्त हो जाती है या नहीं?

जवाब :

सुन्नते मस'ऊला का जवाब ये है कि शीशे में नज़र आने वाला अक्स ना तो तस्वीर है ना तस्वीर के हुक्म में है लिहाज़ा इस के बिल मुक़ाबिल नमाज़ अदा करना बिला तकल्लुफ़ जाइज़ और दुरुस्त है चुनांचे अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमा जद्दुल मुमतार में लिखते हैं कि मुझ से ऐसे शख्स के बारे में पूछा गया जो नमाज़ पढ़ रहा हो और इस के सामने शीशा हो तो मैने जवाब दिया कि ऐसे शख्स की नमाज़ जाइज़ है।

इसी तरह सदरुश्शरिया अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा लिखते हैं : आईना सामने हो तो नमाज़ में कराहत नहीं, कि सबाबे कराहत तस्वीर है वो यहाँ मौजूद नहीं और अगर इसे तस्वीर का हुक्म दें तो आईने को रखना भी मिस्ले तस्वीर नाजाइज़ हो जाये हालाँकि बिल इज्मा जाइज़ है। (فتاوی امجدیہ، باب مفسدات الصلوات ج1، ص184)

शीशे को सामने नमाज़ पढ़ने की ये तफ़सील इस लिहाज़ से थी कि इस के जवाज़ में उलमा को कलाम नहीं है लेकिन जहाँ तक तक़वा का ताल्लुक़ है तो इस से हतल वसी इज्तिनाब ही बेहतर है ताकि आदमी कामिल खुशू व खुज़ू के साथ नमाज़ अदा कर सके। (انوار الفتاوی، ص212، 213)

जिसने फ़ज्र नहीं पढ़ी उसके लिये जुम्आ व ईदैन पढ़ना।

सवाल:

अगर कोई शख्स नमाज़े फ़ज्र अदा नहीं कर पाया हो तो क्या वो नमाज़े जुम्आ और नमाज़े ईदैन अदा कर सकता है या नहीं?
क्या इस के किये फ़ज्र की क़ज़ा पढ़ना ज़रूरी है? हालाँकि इस ने फ़ज्र की नमाज़ बिला उज़्र तर्क की है।

जवाब :

कोई शख्स फ़ज्र की नमाज़ अदा ना कर पाये तो ईदैन और जुम्आ की नमाज़ अदा कर सकता है या नहीं कर सकता है, ये मसअला हर शख्स के लिये नहीं है बल्कि सिर्फ साहिबे तरतीब के लिये है यानी वो शख्स जिस की ज़िंदगी में 5 या इस से कम नमाज़ें क़ज़ा हुई हो, ऐसे शख्स के लिये फुक़हा -ए- किराम ने जुम्आ के हवाले से ये मसअला बयान फ़रमाया है कि अगर इस दिन इस से फ़ज्र की नमाज़ रह जाये तो वो इसे अदा किये बग़ैर जुम्आ नहीं पढ़ सकता। (क्योंकि उस पर तरतीब लाज़िम है) मसअले की मुकम्मल तफ़सील बहारे शरीअत में यूँ है : जुम्आ के दिन फ़ज्र क़ज़ा हो गयी, अगर फ़ज्र पढ़ कर जुम्आ में शरीक हो सकता है तो फ़र्ज़ है कि पहले फ़ज्र पढ़े अगर्चे खुत्बा होता हो और अगर ना मिलेगा मगर जुम्आ के साथ वक़्त भी खत्म हो जायेगा तो जुम्आ भी पढ़ ले फिर फ़ज्र पढ़े इस सूरत में तरतीब साकित है। (انوار الفتاوی، ص221)