तयम्मुम का बयान | Tayammum Ka Tarika In Hindi


By ilmnoohai.com   ·  
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जिस का वुज़ू ना हो या नहाने की ज़रूरत हो और पानी पर कुदरत ना हो तो वुज़ू और ग़ुस्ल की जगह तयम्मुम करे।

पानी पर कुदरत की चंद सूरतें हैं :

(1) ऐसी बीमारी हो कि वुज़ू या ग़ुस्ल से उसके ज्यादा होने या देर में अच्छा होने का सहीह अंदेशा हो ख्वाह यूँ कि उस ने खुद आज़माया हो कि जब वुज़ू या ग़ुस्ल करता है तो बीमारी बढ़ती है या यूँ कि किसी मुसलमान अच्छे लायक़ हकीम ने जो जाहिरन फ़ासिक़ ना हो कह दिया हो कि पानी नुक़्सान करेगा।

महज़ ख्याल ही ख्याल बीमारी बढ़ने का हो तो तयम्मुम जाइज़ नहीं। यूँ ही काफ़िर या फ़ासिक़ या मामूली तबीब के कहने का ऐतबार नहीं। (देखिये बहारे शरीअत)

और अगर पानी बीमारी को नुक़्सान नहीं करता मगर वुज़ू या गुस्ल के लिये हरकत नुक़्सान देती तो या खुद वुज़ू नहीं कर सकता और कोई ऐसा भी नहीं जो वुज़ू करा दे तो भी तयम्मूम करे। यूँ ही किसी के हाथ फट गये कि खुद वुज़ू नहीं कर सकता और कोई ऐसा भी नहीं जो वुज़ू करा दे तो तयम्मूम करे।

बे वुज़ू के अक्सर आज़ा -ए- वुज़ू (यानी वो हिस्सा जो वुज़ू में धोया जाता है) या जुनुब (जिस पे गुस्ल फर्ज़ हो उसके) अक्सर बदन में ज़ख्म हो या चेचक निकली हो तो तयम्मूम करे वरना जो हिस्सा उज़्व या बदन का अच्छा हो उसको धोये और ज़ख्म की जगह ब वक़्ते ज़रर इसके आस-पास भी मसह करे और मसह से भी ज़रर हो तो उस पर कपड़ा डाल कर मसह करे। (देखिये बहारे शरीअत)

बीमारी में अगर ठंडा पानी नुक़्सान करता है और गर्म पानी नुक़्सान ना करे तो गर्म पानी से वुज़ू और गुस्ल ज़रूरी है, तयम्मुम ऐसे में जाइज़ नहीं। हाँ अगर ऐसी जगह हो कि गर्म पानी ना मिल सके तो तयम्मुम करे यूँ ही अगर ठंडे वक़्त में वुज़ू अगर या गुस्ल नुक़्सान करता है और गर्म वक़्त में नहीं तो ठंडे वक़्त में तयम्मुम करे और जब गर्म वक़्त आये तो आइन्दा नमाज़ के लिये वुज़ू कर लेना चाहिये और जो नमाज़ इस तयम्मुम से पढ़ ली उसे दोबारा पढ़ने की हाजत नहीं।

अगर सर पर पानी डालना नुक़्सान करता है तो गले से नहाये और पूरे सर का मसह करे। (देखिये बहारे शरीअत)

(2) वहाँ चारों तरफ एक एक मील तक पानी का पता नहीं (तो ऐसे में तयम्मुम कर सकते हैं) इस की तफ़सील बयान की जाती है :

अगर ये गुमान हो कि एक मील के अंदर पानी होगा तो तलाश कर लेना जरूरी है, ऐसे में बिना तलाश किये तयम्मुम जाइज़ नहीं फिर अगर बिना तलाश किये तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ली और उसके बाद तलाश करने पर पानी मिल गया तो वुज़ू कर के नमाज़ को दोबारा पढ़ना लाज़िम है और अगर ना मिला तो वो जो नमाज़ तयम्मुम से पढ़ी थी वो हो गयी

अगर क़रीब में पानी होने और ना होने किसी का गुमान नहीं तो तलाश कर लेना मुस्तहब है यानी बेहतर है पर लाज़िम नहीं और बिना तलाश किये तयम्मुम से पढ़ ली तो नमाज़ हो गयी। (देखिये बहारे शरीअत)

अगर ग़ालिब गुमान ये है कि मील के अंदर पानी नहीं है तो तलाश करना ज़रूरी नहीं फिर अगर तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ली और ना तलाश किया और ना कोई ऐसा है जिस से पूछे और बाद में मालूम हुआ कि पानी यहाँ से क़रीब है तो नमाज़ को दोहराना ज़रूरी नहीं और ये तयम्मुम अब जाता रहा और अगर वहाँ कोई था जिससे पूछ सकता था पर बिना पूछे नमाज़ पढ़ ली और बाद को मालूम हुआ कि पानी क़रीब है तो नमाज़ को दोहरा लेना चाहिये।

अगर साथ में ज़म ज़म शरीफ़ है जो लोगों के लिये तबर्रुकन लिये जा रहा है या बीमार को पिलाने के लिये और इतना है कि वुज़ू हो जायेगा तो तयम्मुम जाइज़ नहीं। (देखिये बहारे शरीअत)

अगर चाहता है कि ज़म-ज़म शरीफ़ से वुज़ू ना करे और तयम्मुम करना जाइज़ हो जाये तो इस का तरीक़ा ये है कि किसी ऐसे शख्स को जिस पे भरोसा हो कि फिर दे देगा वो पानी हिबा कर दे और उस का कुछ बदला ठहरा ले तो अब तयम्मुम जाइज़ हो जायेगा। जो ना आबादी में हो ना आबादी के क़रीब और उसके हमराह पानी मौजूद है और उसे याद ना रहा और तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ली तो हो गयी और अगर आबादी के करीब में है तो नमाज़ को दोहराये। (देखिये बहारे शरीअत)

अगर अपने साथी के पास पानी है और ये गुमान है कि माँगने से दे देगा तो माँगने से पहले तयम्मुम जाइज़ नहीं फिर अगर नहीं माँगा और तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ली और बाद नमाज़ माँगा और उसने दे दिया या बिना माँगे उसने खुद दे दिया तो वुज़ू कर के नमाज़ को दोहराना लाज़िम है।

और अगर माँगा और ना दिया तो नमाज़ हो गयी और अगर बाद को भी ना माँगा जिससे देने ना देने का हाल खुलता और ना उसने खुद दिया तो नमाज़ हो गयी और अगर देने का गालिब गुमान नहीं और तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ली जब भी यही सूरतें हैं कि बाद को पानी दे दिया तो वुज़ू कर के नमाज़ का ईआदा करे वरना हो गयी। (देखिये बहारे शरीअत)

नमाज़ पढ़ते में किसी के पास पानी देखा और गुमान ग़ालिब है कि दे देगा तो चाहिये कि नमाज़ तोड़ दे और उस से पानी माँगे और अगर नहीं माँगा और पूरी कर ली और फिर उसने खुद पानी दिया या माँगने पर दिया तो नमाज़ दोहराना लाज़िम है और ना दे तो हो गयी और अगर देने का गुमान ना था और नमाज़ के बाद उसने खुद दे दिया या माँगने से दिया जब भी दोहरा ले।

और अगर उस ने खुद दिया ना इस ने माँगा कि हाल मालूम होता तो नमाज़ हो गयी और अगर नमाज़ पढ़ते में उस ने खुद कहा कि पानी लो, वुज़ू कर लो और वो कहने वाला मुसलमान है तो नमाज़ जाती रही, तोड़ देना फर्ज़ है और कहने वाला काफ़िर है तो ना तोड़े फिर नमाज़ के बाद अगर उस ने पानी दे दिया तो वुज़ू कर के नमाज़ दोहरा ले। (देखिये बहारे शरीअत)

(3) इतनी सर्दी हो कि नहाने से मर जाये या बीमार होने का क़वी अंदेशा हो और लिहाफ़ वग़ैरा कोई ऐसी चीज़ उसके पास नहीं जिसे नहाने के बाद ओढ़े और सर्दी के ज़रर से बचे, ना आग है जिसे ताप सके तो तयम्मुम जाइज़ है।

(4) दुश्मन का खौफ़ कि अगर उस ने देख लिया तो मार डालेगा, या माल छीन लेगा या इस ग़रीब नादार का क़र्ज़ ख्वाह है कि इसे क़ैद करा देगा या उस तरफ साँप है कि काट लेगा या शेर है कि फाड़ डालेगा या कोई बदकार शख्स है और ये औरत या अमरद है जिसको अपनी बे आबरूई का गुमाने सहीह है तो तयम्मुम जाइज़ है। (देखिये बहारे शरीअत)

कैदी को क़ैद खाना वाले वुज़ू ना करने दें तो तयम्मुम कर के पढ़ ले और इआदा करे और अगर वो दुश्मन या क़ैद खाना वाले नमाज़ भी ना पढ़ने दें तो इशारे से पढ़े फिर दोहरा ले।

(5) जंगल में डोल रस्सी नहीं कि पानी भरे तो तयम्मुम जाइज़ है।

अगर हमराही के पास डोल रस्सी है वो कहता है कि ठहर जा मै तुझे पानी भरने से फ़ारिग़ हो कर दूँगा तो मुस्तहब है कि इंतिज़ार करे और अगर इंतिज़ार ना किया और तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ली तो हो गई। (देखिये बहारे शरीअत)

(6) प्यास का खौफ यानी उसके पास पानी है मगर वुज़ू या ग़ुस्ल के सर्फ़ में लाये तो खुद या दूसरा मुसलमान या अपना या उस का जानवर अगर्चे वो कुत्ता हो जिसका पालना जाइज़ है प्यासा रह जायेगा और अपनी या उन में किसी की प्यास ख्वाह फिलहाल मौजूद हो या आइंदा इस का सहीह अंदेशा हो कि वो राह ऐसी है कि दूर तक पानी का पता नहीं तो तयम्मुम जाइज़ है।

पानी मौजूद है मगर आटा गूँधने की ज़रूरत है जब भी तयम्मुम जाइज़ है और शोरबे की ज़रूरत के लिये जाइज़ नहीं। पानी मोल मिलता है और उसके पास हाजते ज़रूरिया से ज़्यादा दाम नहीं तो तयम्मुम जाइज़ है। (देखिये बहारे शरीअत)

बदन या कपड़ा इस क़द्र नापाक है जिस पे नमाज़ पढ़ना जाइज़ नहीं और पानी सिर्फ इतना है कि चाहे वुज़ू करे या उस नापाकी को पाक कर ले, दोनों काम नहीं हो सकते तो पानी से उसको पाक कर ले फिर तयम्मुम करे।

और अगर पहले तयम्मुम कर लिया उसके बाद पाक किया तो अब फिर तयम्मुम करे कि पहला तयम्मुम ना हुआ।

मुसाफिर को राह में कहीं रखा हुआ पानी मिला तो अगर कोई वहाँ है तो उस से दरयाफ्त कर ले अगर वो कहे कि सिर्फ पीने के लिये है तो तयम्मुम करे वुज़ू जाइज़ नहीं चाहे कितना ही पानी हो और अगर उसने कहा कि पीने के लिये भी है और वुज़ू के लिये भी तो तयम्मुम जाइज़ नहीं और अगर कोई ऐसा नहीं जो बता सके और पानी थोड़ा हो तो तयम्मुम करे और ज़्यादा हो तो वुज़ू करे। (देखिये बहारे शरीअत)

वुज़ू कर के ईदैन की नमाज़ पढ़ रहा था नमाज़ के दरमियान नमाज़ मे बे वुज़ू हो गया और वुज़ू करेगा तो वक़्त जाता रहेगा जमा'अत हो चुकेगी तो तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ले।

गहन की नमाज़ के लिये भी तयम्मुम जाइज़ है जबकि वुज़ू करने में गहन खुल जाने या जमा'अत हो जाने का अंदेशा हो। वुज़ू मे मशगूल हो गया तो ज़ुहर या मगरिब या इशा या चाश्त या जुम्आ की पिछ्ली सुन्नतो का वक़्त जाता रहेगा तो तयम्मुम कर के पढ़े।

एक जनाज़े के लिये तयम्मुम किया और नमाज़ पढ़ी फिर दूसरा जनाज़ा अगर दरमियान मे इतना वक़्त मिला वुज़ू करे तो नमाज़ हो चुकेगी तो इस के लिये अब दोबारा तयम्मुम करे और अगर इतना वक़्फा ना हो कि वुज़ू कर ले तो वही पहला काफी है।

सलाम का जवाब देने या दुरूद शरीफ़ वगैरा वो वज़ाइफ पढ़ने या सोने या वुज़ू या कोई मस्जिद मे जाने या ज़ुबानी क़ुरआन पढ़ने के लिये तयम्मुम जाइज़ है अगर्चे पानी पर कुदरत हो। (देखिये बहारे शरीअत)

अगर कोई ऐसी जगह है कि ना पानी मिलता है ना पाक मिट्टी कि तयम्मुम करे तो इसे चाहिये कि वक़्ते नमाज़ मे नमाज़ की सी सूरत बनाये यानी तमाम हरकात बिला निय्यत नमाज़ बजा लाये।

मस'अला :

कोई ऐसा है कि वुज़ू करता तो पेशाब के क़तरे टपकते हैं और तयम्मुम करे तो नही तो इसे लाज़िम है की तयम्मुम करे।

मस'अला :

इतना पानी मिला जिस से वुज़ू हो सकता है और इसे नहाने की ज़रूरत है तो इस पानी से वुज़ू कर लेना चाहिये और गुस्ल के लिये तयम्मुम करे। (देखिये बहारे शरीअत) वक़्त इतना तंग हो गया कि वुज़ू या ग़ुस्ल करेगा तो नमाज़ क़ज़ा हो जायेगी तो चाहिये कि तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ले फिर वुज़ू या ग़ुस्ल कर के इआदा करना लाज़िम है।

मस'अला :

औरत हैज़ व निफ़ास से पाक हो गयी और पानी पर क़ादिर नहीं तो तयम्मुम करे।

मस'अला :

र्दे को अगर ग़ुस्ल ना दे सके ख्वाह इस वजह से पानी नहीं या इस वजह से कि उस के बदन को हाथ लगाना जाइज़ नहीं जैसे अजनबी औरत या अपनी औरत के मरने के बाद उसे छू नहीं सकता तो उसे तयम्मुम कराया जाये, ग़ैर मेहरम को अगर्चे शौहर हो औरत को तयम्मुम कराने में कपड़ा हाइल होना चाहिये। (देखिये बहारे शरीअत)

जुनूब और हाइज़ और मय्यित और बे वुज़ू ये सब एक जगह हैं और किसी ने इतना पानी जो ग़ुस्ल के लिये काफ़ी है लाकर कहा कि जो चाहे खर्च करे तो बेहतर ये है कि जुनुब इस से नहाये और मुर्दे को तयम्मुम कराया जाये और दूसरे भी तयम्मुम करें और अगर कहा कि इस में से तुम सब का हिस्सा है और हर एक को इस में इतना हिस्सा मिला जो इस के काम के लिये पूरा नहीं तो चाहिये कि मुर्दे के ग़ुस्ल के लिये अपना अपना हिस्सा दें और सब तयम्मुम करें।

मस'अला :

दो शख्स बाप बेटे हैं और किसी ने इतना पानी दिया कि एक का वुज़ू हो सकता है तो वो पानी बाप के सर्फ़ में आना चाहिये। (देखिये बहारे शरीअत)

जिस पर नहाना फ़र्ज़ है इसे बग़ैर ज़रूरत मस्जिद में जाने के लिये तयम्मुम जाइज़ नहीं हाँ अगर मजबूरी हो जैसे डोल रस्सी मस्जिद में हो और कोई ऐसा नहीं जो ला दे तो तयम्मुम कर के जाये और मस्जिद से जल्दी ले कर निकल आये।

मस्जिद में सोया था और नहाने की ज़रूरत हो गयी तो आँख खुलते ही जहाँ सोया था वहीं फौरन तयम्मुम कर के निकल आये ताख़ीर हराम है।

मस'अला :

क़ुरआने मजीद छूने के लिये या सजदा -ए- तिलावत या सजदा -ए- शुक्र के लिये तयम्मुम जाइज़ नहीं जब कि पानी पर कुदरत हो। (देखिये बहारे शरीअत)

तयम्मुम का तरीक़ा ये है कि दोनों हाथ की उंगलिया कुशादा कर के किसी ऐसी चीज़ पर जो ज़मीन की क़िस्म से हो मार कर लौट लें और ज़्यादा गर्द लग जाये तो झाड लें और इस से सारे मुँह का मसा करे फिर दूसरी मरतबा यूँ ही करे और दोनो हाथो का नाखून से कोहनियो समेत मसह करे।

मस'अला :

वुज़ू और गुस्ल दोनो का तयम्मुम एक ही तरह है।

तयम्मुम मे तीन फ़र्ज़ हैं :

निय्यत :

अगर किसी ने हाथ मिट्टी पर मार मूँह और हाथो पर फेर लिया और निय्यत ना की तो तयम्मुम ना होगा। (देखिये बहारे शरीअत)

नमाज़ इस तयम्मुम से जाइज़ हो गई जो पाक होने की निय्यत या किसी ऐसी इबादत मक़्सूदा के लिये किया गया हो जो बिला तहारत जाइज़ ना हो तो अगर मस्जिद में जाने या निकलने या क़ुरआने मजीद छूने या अज़ान व इक़ामत (ये सब इबादत मक़्सूदा नहीं) या सलाम करना या सलाम का जवाब देने या ज़ियारते कुबूर या दफ़्न मय्यित या बे वुज़ू के क़ुरआने मजीद पढ़ने (इन सब के लिये तहारत शर्त नहीं) के लिये तयम्मुम किया हो तो इस से नमाज़ जाइज़ नहीं बल्कि जिस के लिये किया गया हो तो इस की नमाज़ जाइज़ नहीं।

मसअला :

जुनुब ने क़ुरआने मजीद पढ़ने के लिये तयम्मुम किया हो तो इस से नमाज़ पढ़ सकता है। सजदा -ए- शुक्र की निय्यत से जो तयम्मुम किया हो इस से नमाज़ ना होगी। (देखिये बहारे शरीअत)

मसअला :

दूसरे को तयम्मुम का तरीक़ा बताने के लिये जो तयम्मुम किया इस से भी नमाज़ जाइज़ नहीं।

मसअला :

नमाज़े जनाज़ा या ईदैन या सुन्नतों के लिये इस ग़र्ज़ से तयम्मुम किया हो कि वुज़ू में मशगूल होगा तो ये नमाज़ें फौत हो जायेंगी तो इस तयम्मुम से इस खास नमाज़ के सिवा कोई दूसरी नमाज़ जाइज़ नहीं।

मसअला :

नमाज़े जनाज़ा या ईदैन के लिये तयम्मुम इस वजह से किया कि बीमार था या पानी मौजूद ना था तो इस से फ़र्ज़ नमाज़ और दीग़र इबादतें सब जाइज़ हैं। (देखिये बहारे शरीअत)

मसअला :

सजदा -ए- तिलावत के तयम्मुम से भी नमाज़ जाइज़ नहीं।

मसअला :

जिस पर नहाना फ़र्ज़ है उसे ये ज़रूरी नहीं कि ग़ुस्ल और वुज़ू दोनों के लिये दो तयम्मुम करे बल्कि एक ही में दोनों की निय्यत कर ले दोनों हो जायेंगे और अगर सिर्फ ग़ुस्ल या वुज़ू की निय्यत की जब भी काफी है।

मसअला :

बीमार या बे दस्त (वो शख्स जो हाथ से माज़ूर हो) या अपने आप तयम्मुम नहीं कर सकता तो इसे कोई दूसरा शख्स तयम्मुम करा दे और इस वक़्त तयम्मुम कराने वाले की निय्यत का ऐतबार नहीं बल्कि इस की निय्यत चाहिये जिसे कराया जा रहा है। (देखिये बहारे शरीअत)

सारे मुँह पर हाथ फेरना :

इस तरह कि कोई हिस्सा बाक़ी रह ना जाये अगर बाल बराबर कोई जगह रह गयी तो तयम्मुम ना हुआ।

मसअला :

दाढ़ी और मूँछों और भवों के बालों पर हाथ फेर जाना ज़रूरी है। मुँह कहाँ से कहाँ तक है इस को हम ने वुज़ू में बयान कर दिया। भवों के नीचे और आँखों के ऊपर जो जगह है और नाक के हिस्सा -ए- ज़िरी का ख्याल रखें कि अगर ख्याल ना रखेगा तो इन पर हाथ ना फेरेगा और तयम्मुम ना होगा। (देखिये बहारे शरीअत)

औरत नाक में फूल पहने हो तो निकाल लें फूल की जगह बाक़ी रह जायेगी और नथ पहने हो तब भी ख्याल रखें कि नथ की वजह से कोई जगह बाक़ी तो नहीं रहे।

मसअला :

नथनों के अंदर मसह करना कुछ दरकार नहीं।

मसअला :

होंठ का वो हिस्सा जो आदतन मुँह बंद होने की हालत में दिखाई देता है इस पर भी मसह हो जाना ज़रूरी है तो अगर किसी ने हाथ फेरते वक़्त होंठ को ज़ोर से दबा लिया कि कुछ हिस्सा बाक़ी रह गया तयम्मुम ना हुआ। यूँ ही अगर ज़ोर से आँखें बंद कर ली जब भी तयम्मुम ना होगा।

मसअला :

मूँछ के बाल इतने बढ़ गये कि होंठ छुप गया तो इन बालों को उठा कर होंठो पर हाथ फेरे, बालों पर हाथ फेरना काफी नहीं। (देखिये बहारे शरीअत)

दोनों हाथों को कोहनियों समेत मसह करना।

इस में भी ये ख्याल रहे कि ज़र्रा बराबर बाक़ी ना रहे वरना तयम्मुम ना होगा।

मसअला :

अँगूठी छल्ले पहने हो तो इन्हें उतार कर इन के नीचे हाथ फेरना फ़र्ज़ है।

औरतों को इस में बहुत एहतियात की ज़रूरत है। कंगन चूड़ियाँ जितने ज़ेवर हाथ में पहने हो सब को हटा कर या उतार कर जिल्द के हर हिस्से पर हाथ पहुँचाये इस की एहतियातें वुज़ू से बढ़ कर हैं।

मसअला :

तयम्मुम में सर और पाँव का मसह नहीं। (देखिये बहारे शरीअत)

तयम्मुम की सुन्नतें :

  • बिस्मिल्लाह पढ़ना।
  • दोनों हाथों को ज़मीन पर मारना।
  • उंगलियाँ खुली रखना।
  • हाथों को झाड़ लेना यानी एक हाथ के अँगूठे की जद को दूसरे हाथ के अँगूठे की जद पर मारना ना इस तरह की ताली की आवाज़ निकले।
  • ज़मीन पर हाथ मार कर लौटा देना।
  • पहले मुँह फिर हाथों का मसह करना।
  • दोनों का मसह पै दर पै (एक के बाद एक) करना।
  • पहले दाहिने हाथ फिर बायें का मसह करना। (देखिये बहारे शरीअत)
  • दाढ़ी का ख़िलाल करना।
  • उंगलियों का ख़िलाल जब कि गुबार पहुँच गया हो और अगर गुबार ना पहुँचा मस्लन पत्थर वग़ैरह किसी ऐसी चीज़ पर जिस पर गुबार ना हो तो ख़िलाल फ़र्ज़ है। हाथों के मसह में बेहतर तरीक़ा ये है कि बायें हाथ के अँगूठे के इलावा चारों उंगलियों का पेट दाहिने हाथ की पुश्त पर रखे और उंगलियों के सिरों से कोहनी तक ले जाये और फिर वहाँ से बायें हाथ की हथेली से दाहिने के पेट को मस करता हुआ घटे तक लाये और अँगूठे की पेट से दाहिने अँगूठे की पुश्त का मसह करे यूँ ही दाहिने हाथ से बायें हाथ का मसह करे, और एक दम से पूरी हथेली और उंगलियों से मसह कर लिया तयम्मुम हो गया ख्वाह काहनी से उंगलियों की तरफ लाया या उंगलियों से काहनी की तरफ़ ले गया मगर पहली सूरत में ख़िलाफ़े सुन्नत हुआ। (देखिये बहारे शरीअत)

मसअला :

अगर मसह करने में सिर्फ तीन उंगलियाँ काम में लाया जब भी हो गया और अगर एक या दो से मसह किया तयम्मुम ना हुआ अगर्चे तमाम उज़्व पर इन को फेर लिया हो। तयम्मुम होते हुये दोबारा तयम्मुम ना करे। ख़िलाल के लिये हाथ मारना ज़रूरी नहीं। किस चीज़ से तयम्मुम जाइज़ है और किस से नहीं

मसअला :

ज़मीन से हो और जो चीज़ ज़मीन की जिंस से नहीं इस से तयम्मुम जाइज़ नही। (देखिये बहारे शरीअत)

मसअला :

जिस मिट्टी से तयम्मुम किया जाये इस का पाक होना ज़रूरी है यानी ना इस पर किसी नजासत का असर हो ना ये जो कि महज़ खुश्क होने से असरे नजासत जाता रहा हो।

मसअला :

जिस चीज़ पर नजासत गिरी और सूख गयी इस से तयम्मुम नहीं कर सकते अगर्चे नजासत का असर बाक़ी ना हो अलबत्ता नमाज़ इस पर पढ़ सकते हैं।

मसअला :

ये वहम कि कभी नजिस हुई होगी फ़िज़ूल है कि इस का ऐतबार नहीं।

मसअला :

जो चीज़ आग से जल कर ना राख होती है ना पिघलती है ना नर्म होती है वो ज़मीन की जिंस से है इस से तयम्मुम जाइज़ है। रेता, चूना, सुरमा, हरताल, गंधक, मुर्दा सींग, गेरू, फतर, ज़बर जद, फिरोज़ा, अक़ीक़, ज़मर्द वग़ैरह जवाहिर से तयम्मुम जाइज़ है अगर्चे इन पर गुबार ना हो। (देखिये बहारे शरीअत)

पक्की ईंट चीनी या मिट्टी के बर्तन से जिस पर किसी ऐसी चीज़ की रंगत हो जो जिन्से ज़मीन से है जैसे गेरू, खरया, मिट्टी या वो चीज़ जिस की रंगत ज़मीन से तो नहीं मगर बर्तन पर इस का जर्म ना हो तो इन दोनों सूरतों में इस से तयम्मुम जाइज़ है और अगर जिन्से ज़मीन से ना हो और इसका जर्म बर्तन पर हो तो जाइज़ है।

मसअला :

गल्ला, गेहूँ, जौ वग़ैरह और लकड़ी या घास और शीशा पर गुबार हो तो इस गुबार से तयम्मुम जाइज़ है जब कि इतना हो कि हाथ में लग जाता हो वरना नहीं।

मसअला :

गल्ला, गेहूँ, जौ वग़ैरह और लकड़ी या घास और शीशा पर गुबार हो तो इस गुबार से तयम्मुम जाइज़ है जब कि इतना हो कि हाथ में लग जाता हो वरना नहीं।

मसअला :

मुश्क व अंबर, काफुर, लोबान से तयम्मुम जाइज़ नहीं। (देखिये बहारे शरीअत)

मसअला :

राख और सोने चांदी फौलाद वग़ैरह के कश्तों से भी जाइज़ नहीं।

मसअला :

ज़मीन या पत्थर जल कर सियाह हो जाये इस से तयम्मुम जाइज़ है यूँ ही अगर पत्थर जल कर राख हो जाये इस से भी जाइज़ है।

मसअला :

अगर खाक में राख मिल जाये और खाक ज़्यादा हो तो तयम्मुम जाइज़ है वरना नहीं।

मसअला :

ज़र्द, सुर्ख, सब्ज़, सियाह रंग की मिट्टी से तयम्मुम जाइज़ है, मगर जब रंगत छूट कर मुँह को रंगीन कर दे तो बग़ैर ज़रूरते शदीदा इस से तयम्मुम करना जाइज़ नहीं और कर लिया तो हो गया। (देखिये बहारे शरीअत) भीगी मिट्टी से तयम्मुम जाइज़ है जब कि मिट्टी गालिब हो।

मसअला :

मुसाफ़िर का ऐसी जगह गुज़र हुआ कि सब तरफ कीचड़ ही कीचड़ और पानी नहीं पता कि वुज़ू या ग़ुस्ल करे और कपड़े में भी गुबार नहीं तो इसे चाहिये कि कपड़ा कीचड़ में सान के सुखा ले और इस से तयम्मुम करे और वक़्त जाता हो तो मजबूरी को कीचड़ ही से तयम्मुम कर ले जब कि मिट्टी गालिब हो।

मसअला :

गद्दे और दरी वग़ैरह में गुबार है तो इस से तयम्मुम कर सकता है अगर्चे वहाँ मिट्टी मौजूद हो जबकि गुबार इतना हो कि हाथ फेरने से उंगलियों का निशान बन जाये। (देखिये बहारे शरीअत)

नजिस कपड़े में गुबार हो इस से तयम्मुम जाइज़ नहीं हाँ अगर इस से सुखाने के बाद गुबार पड़ा तो जाइज़ है।

मकान बनाने या गिराने में या किसी और सूरत में मुँह और हाथों पर गर्द पड़ी और तयम्मुम की निय्यत से मुँह और हाथों पर मसह कर लिया तयम्मुम हो गया।

जिस जगह से एक ने तयम्मुम किया दूसरा भी कर सकता है ये जो मशहूर है कि मस्जिद की दीवार या ज़मीन से तयम्मुम ना जाइज़ या मकरूह है गलत है।

तयम्मुम के लिये हाथ ज़मीन पर मारा और मसह से पहले ही तयम्मुम टूटने का कोई सबब पाया गया तो इस से तयम्मुम नहीं कर सकता। (देखिये बहारे शरीअत)

तयम्मुम किन चीज़ों से टूटता है :

जिन चीज़ों से वुज़ू टूटता है या ग़ुस्ल वाजिब होता है इन में तयम्मुम भी जाता रहेगा और इलावा इन के पानी पर क़ादिर होने से भी तयम्मुम टूट जायेगा।

मरीज़ ने ग़ुस्ल का तयम्मुम किया था और अब इतना तंदरुस्त हो गया कि ग़ुस्ल से ज़रर ना पहुँचेगा तयम्मुम जाता रहा।

किसी ने ग़ुस्ल और वुज़ू दोनों के लिये एक ही तयम्मुम किया था फिर वुज़ू तोड़ने वाली कोई चीज़ पायी गयी या इतना पानी पाया कि जिस से सिर्फ वुज़ू कर सकता है या बीमार और अब इतना तंदरुस्त हो गया कि वुज़ू नुक़्सान ना करेगा और ग़ुस्ल से ज़रर होगा तो सिर्फ वुज़ू के हक़ में तयम्मुम जाता रहा ग़ुस्ल के हक़ में बाक़ी है। (देखिये बहारे शरीअत)

जिस हालत में तयम्मुम नाजाइज़ था अगर वो बाद तयम्मुम पायी गयी तयम्मुम टूट गया जैसे तयम्मुम वाले का ऐसी जगह गुज़र हुआ कि वहाँ से एक मील के अंदर पानी है तो तयम्मुम जाता रहा। ये ज़रूरी नहीं कि पानी के पास ही पहुँच जाये।

मसअला :

इतना पानी मिला कि वुज़ू के लिये काफी नहीं है यानी एक मर्तबा मुँह और एक एक मर्तबा दोनों हाथ पाऊँ नहीं धो सकता तो वुज़ू का तयम्मुम नहीं टूटा और अगर एक मर्तबा धो सकता है तो जाता रहा, यूँ ही ग़ुस्ल के तयम्मुम करने वाले को इतना पानी मिला जिस से ग़ुस्ल नहीं हो सकता तो तयम्मुम नहीं गया। (देखिये बहारे शरीअत)

ऐसी जगह गुज़रा कि वहाँ से पानी क़रीब है मगर पानी के पास शेर या साँप या दुश्मन है जिस से जान या माल या आबरू का सही अंदेशा है, क़ाफ़िला इंतिज़ार ना करेगा और नज़रों से गायब हो जायेगा या सवारी से उतर नहीं सकता जैसे रेल या घोड़ा कि इस के रोके नहीं रोकता या घोड़ा ऐसा है कि उतरने तो देगा मगर फिर चढ़ने ना देगा या ये इतना कमजोर है कि फिर चढ़ ना सकेगा। या कोने में पानी है और इस के पास डोल रस्सी नहीं तो इन सब सूरतों में तयम्मुम नहीं टूटा।

पानी के पास से सोता हुआ गुज़रा तयम्मुम नहीं टूटा, हाँ अगर तयम्मुम वुज़ू का था और नींद इस हद की है जिस से वुज़ू जाता रहे तो बेशक तयम्मुम जाता रहा मगर ना इस वजह से कि पानी पर गुज़रा बल्कि सो जाने से और अगर ऊँघता हुआ पानी पर गुज़रा और पानी की इत्तिला हो गयी तो टूट गया वरना नहीं। (देखिये बहारे शरीअत)

नमाज़ के फ़राइज़, वाजिबात, सुनन व मुस्तहब्बात और तहारत के मसाइल, तयम्मुम का बयान फिर नमाज़े जनाज़ा, नमाज़े तरावीह वग़ैरह सुनन नवाफिल का बयान गुज़रा जिन में कई मसाइल शामिल किये गये। अब यहाँ से सवाल जवाब का सिलसिला शुरू किया जायेगा जिस में जदीद मसाइल और उमूमन पेश आने वाले मसाइल को शामिल किया जायेगा।

हो सकता है कि इस में से कुछ ऐसे मसाइल भी दोबारा शामिल हो जायें जिन का बयान गुज़र चुका लेकिन इस का फायदा ये होगा कि सवाल जवाब के अंदाज़ में वहाँ समझ नहीं आया वो बा आसानी यहाँ समझ सकेंगे। देखा गया है कि सवाल जवाब का तरीका लोगों को समझाने के लिये काफ़ी मुफीद है।

इस सिलसिले में नमाज़, तहारत और नमाज़ से मुतल्लिक़ मसाइल को शामिल किया जायेगा। इंशा अल्लाह इस से लोगों को फायदा पहुँचेगा। (देखिये बहारे शरीअत)

Kya Tambakoo Khane Se Wuzu Toot Jaata Hai?

Sawal:

Wuzu Karne Ke Baad Agar Tambaakoo Wala Paan Khaa Liya Jaye To Wuzu Toot Jaata Hai Ya Nahi? Ek Sahab Ka Kahna Hai Ke Tamabaku Mein Nasha Hota Hai Is Liye Is Se Wuzu Toot Jaayega? Aap Mas'alaa Ki Wazahat Farmaye?

Jawab:

Tamam Fiqh Ki Kitabo Mein Ye Mas'alaa Maujood Hai Ke Itna Nasha Jis Se Chalne Me Paao Ladkhadaye Is Se Wuzu Toot Jaata Hai. Jaisa Ke Bahar-e-Shariat Hissa Duwam Mein Hai Ke Behoshi Joonon Aur Itna Nasha Jis Se Chalne Me Ladkhadaht Aa Jaye, Ye Sab Wuzu Ko Tood Deta Hai

Albahrur Raayiq Me Hai Ke Aisa Nasha Jo Kisi Cheez Ke Istmaal Par Aqal Par Galib Aa Jaye Aur Admi Is Nasha Ke Dauraan Kuch Kaam Na Kar Sake To Nasha Wuzu Ko Tood Deta Hai.

Mazkoora Tamam Ibaarat Se Maloom Hua Ke Mahez Kisi Nasha Awar Cheez Ka Kha Lena Wuzu Ko Nahi Todta Balke Jab Is Se Aisa Nasha Ho Jo Chalne Phirne Aur Digar Kaamo Me Khalal Andaaz Ho Tab Is Se Wuzu Toot'ta Hai. Lehaza Tambaku Agar Nasha Awar Cheez Hai Aur Is Se Aisa Nasha Ho Jaye Jo Aadmi Ki Aqal Aur Amal Ko Mutasir Kar De Aur Chalne Me Paao Ladkhadaye To Wuzu Toot Jayega. Warna Mahez Tambaako Wala Paan Khaa Lene Se Wuzu Nahi Toot'ta. (انوار الفتاوی، ج1، ص195)