वुज़ू में 4 बातें फर्ज़ हैं यानी इन चारों का करना बहुत ज़रूरी है, अगर इन में से एक भी छूट जाये तो वुज़ू नहीं होगा।
इनकी तफ़सील जानने से पहले ये जान लीजिये कि धोना किसे कहते हैं? किसी भी उज़्व (हिस्से, पार्ट) को धोने का ये मतलब है कि उस उज़्व के हर हिस्से पर कम से कम दो बूँद पानी बह जाये। अगर कोई हाथ भिगा कर चेहरे पर मल ले तो इसे धोना नहीं कहा जायेगा या कपड़ा भिगा कर मुँह पोछ ले तो भी धोना नहीं कहा जायेगा जब तक हर हिस्से पर कम से कम 2 बूँद पानी ना बह जाये तब तक वो उज़्व धुला हुआ क़रार नहीं दिया जायेगा। भीग जाना, तेल की तरह पानी मल लेना या एक बूँद बह जान अलग है और धोना लेना अलग है। इस पर खास तवज्जोह देना ज़रूरी है कि बाज़ हिस्से ऐसे हैं कि अगर तवज्जोह ना दी जाये तो वहाँ सहीह से पानी नहीं पहुँचता और गुस्ल और वुज़ू नहीं होता और फिर पढ़ी गई नमाज़ें अकारत जाती हैं।
मुँह कहते हैं शुरू पेशानी (यानी जहाँ से बाल निकलते हैं वहाँ) से नीचे ठोड़ी तक, फिर चौड़ाई में एक कान की लौ से दूसरे तक। ये मुँह है यानी इसे धोना फर्ज़ है। मुँह धोना एक बार फर्ज़ है यानी जहाँ से बाल उगते हैं वहाँ से नीचे के दाँत उगने की जगह तक और एक कान की लौ से दूसरे कान की लौ तक, ये मुँह की हद (Boundaries) हैं। अब अगर कोई चंदला है यानी आधे सर के बाद बाल उगते हैं तो उस पर वहाँ तक धोना फर्ज़ नहीं बल्कि वहीं तक है जहाँ से आदतन (Normally) बाल उगते हैं और अगर किसी के ज़्यादा बाल उगते हैं यानी आदत से ज़्यादा हैं तो फिर जो ज़्यादा हैं उन की जड़ों तक धोना फर्ज़ है। मूँछ, दाढ़ी और बिच्ची (जो बाल होंटों और ठोड़ी के बीच होते हैं) और भवें अगर घनी हो कि जिल्द (चमड़ा) नज़र ना आता हो तो चमड़े का धोना फर्ज़ नहीं बल्कि बालों को धोना फर्ज़ है और अगर बाल घने ना हों तो जिल्द का धोना भी फर्ज़ है| अगर मूँछें घनी हों और बड़ी हों जो लबों (होंटों) को छुपा ले तो भी उन्हें हटा कर लबों को धोना फर्ज़ है। दाढ़ी अगर घनी ना हो और जिल्द नज़र आती हो तो जिल्द का धोना फर्ज़ है और अगर दाढ़ी बड़ी और घनी है तो गले की तरफ नीचे दबाने के बाद जो बाल चेहरे के अंदर आते हैं उन का धोना फर्ज़ है यानी उन बालों को धोना है जिल्द को नहीं और जो चेहरे से बाहर नीचे हों उनका धोना ज़रूरी नहीं। अगर कहीं छोटे बाल और कहीं बड़े हों तो जहाँ छोटे हैं वहाँ जिल्द का और जहाँ बड़े हैं वहाँ बालों का धोना फर्ज़ है।
लबों (यानी होंटों) का वो हिस्सा जो आदतन (Normally) मुँह बन्द करने, चुप रहने पर दिखाई देता है उसे धोना फर्ज़ है, अगर किसी ने ज़्यादा बन्द कर लिया और उस पर पानी नहीं पहुँचा तो वुज़ू नहीं होगा (हाँ ये हो सकता है कि चेहरा धोते वक़्त ज़ोर से बन्द कर लिया हो जिसकी वजह से पानी नहीं पहुँचा लेकिन कुल्ली करते वक़्त पानी पहुँचा तो वुज़ू हो जायेगा) फिर भी एहतियात ज़रूरी है। रुख्सार और कान के बीच की जगह जिसे कनपटी कहते हैं, इसे भी धोना फर्ज़ है। औरतें ख्याल रखें कि नथ का सुराख अगर बन्द नहीं है तो उस में पानी बहाना फर्ज़ है और अगर तंग है तो पानी बहा कर नथ को हरकत दे (यानी हिलाये) वरना ज़रूरी नहीं। आँख के अंदर पानी डाल कर धोना ज़रूरी नहीं है बल्कि नहीं धोना चाहिये कि इस से नुक़सान है और वुज़ू करते वक़्त बहुत ज़ोर से आँखों को मींच लेना भी नहीं चाहिये क्योंकि इस से मुम्किन है चेहरे का चमड़ा सिमट कर एक हिस्सा बना ले जिस पर पानी ना पहुँचे। पलक का हर बाल धोना फर्ज़ है अगर इस में कोई सख्त चीज़ जमी हो तो उसे छुड़ाना ज़रूरी है।
हाथ में कोहनियाँ भी दाखिल हैं अगर को हनियों से ले कर नाखून तक एक ज़र्रा भी कहीं धुलने से बाक़ी रह जाये तो वुज़ू नहीं होगा, लिहाज़ा एहतिय्यात ज़रूरी हैं| हाथ में गहने, छल्ले, कड़ा, कंगन, अँगूठी, चूड़ी वग़ैरह हों तो अगर इनके नीचे पानी नहीं जाता तो इसे उतार कर पानी बहाना फर्ज़ है वरना वुज़ू नहीं होगा और अगर हल्का ढीला है कि हिलाने से पानी चला जाता है तो हिलाना ज़रूरी है और अगर ज़्यादा ढीला है कि बगैर हिलाये पानी चला जाता है तो हिलाना भी ज़रूरी नहीं। उंगलियों की घैया, करवटें और नाखूनों के अंदर के ऊपर वाला हिस्सा फिर कलाई के बाल और हर गोशे को धोना ज़रूरी है। अगर किसी की पाँच से ज़्यादा उंगलियाँ हैं तो सबका धोना फर्ज़ है। अगर एक काँधे से दो हाथ निकले हुये हों तो जो पूरा हो सिर्फ़ उसे धोना फ़र्ज़ है। और अगर उस दूसरे हाथ का वो हिस्सा भी इस में शामिल है जिसे वुज़ू में धोना फर्ज़ है तो उसे भी धोना फर्ज़ है और अलग है तो फर्ज़ नहीं बल्कि मुस्तहब है यानी बेहतर है।
पूरे सर का मसहा करना सुन्नते मुअ़क्किदा है और एक चौथाई (One Fourth, 1/4) यानी 25% सर का मसहा करना फर्ज़ है। आप के सर के चार हिस्से करने पर जो एक हिस्सा आता है उतना धोना फर्ज़ है वरना वुज़ू नहीं होगा। सर का मसहा करने के लिये हाथों का तर होना ज़रूरी है अब वो तरी हाथ धोने से हो या अलग से तर किया जाये। अगर हाथ की तरी से एक बार किसी हिस्से का मसहा कर लिया जाये तो फिर उस पर जो नमी बाक़ी रहती है वो दूसरे मसहा के लिये काफ़ी नहीं है लिहाज़ा अगर कोई हाथ की तरी से हाथ का मसहा कर लेता है तो सर के मसहा के लिये हाथ अलग से तर करना होगा। हाथों को तर करने के लिये जो कुछ लोग तीन तीन बार दोनों चुल्लू में पानी ले कर कोहनियों की तरफ़ बहाते हैं, ये वुज़ू का हिस्सा नहीं है। हाथ तर करना है तो बस धो लिया जाये, इस तरह करना मज़्कूर नहीं। अगर सर पर बाल ना हो तो जिल्द की चौथाई का मसहा करना है और अगर बाल हैं तो बालों का और उन बालों का जो सर पर हैं, जो लटक रहे हैं उन पर करना काफ़ी नहीं। इमामा, टोपी या दुपट्टे के ऊपर मसहा करना काफ़ी नहीं है। अगर दुपट्टा या टोपी का कपड़ा ऐसा है कि पानी फूट कर अन्दर चला जाता है और सर को तर कर देता है तो मसहा हो जायेगा।
पैरों को टखनों समेत अच्छी तरह धोना चाहिये ताकि कोई हिस्सा बाक़ी ना रहे अगर पैर में कोई छल्ला वग़ैरह हो तो वही हुक्म है जो पहले बयान किया गया यानी पानी अंदर नहीं जाता तो उतार कर धोना है, अगर हिलाने से जाता है तो हरकत देना है और अगर ढीला है कि बगैर हरकत के चला जाता है तो हरकत ज़रूरी नहीं। कुछ लोग पैर में काला धागा बांधते हैं जिसकी वजह या तो बीमारी होती है या फिर चोट से बचने के लिये तो अगर कसकर बंधा हुआ है तो उस पर भी तवज्जोह ज़रूरी है। उंगलियों की करवटें, घैय्या, एड़ी, पुश्त वग़ैरह सब को धोना फर्ज़ है लिहाज़ा एहतिय्यात ही ज़रूरी है वरना एक ज़र्रा बराबर भी सूखा रह जाने पर वुज़ू नहीं होगा। जिन हिस्सों पर पानी बहाना फर्ज़ है वहाँ ज़रूरी नहीं कि क़स्दन ही बहे बल्कि बिला क़स्द बह जाने से भी वुज़ू हो जायेगा। इसे आसान लफ्ज़ों में यूँ समझें कि जान बूझ कर ही पानी बहाने से नहीं बल्कि अनजाने में भी पानी बह गया तो वुज़ू हो जायेगा। मिसाल के तौर पर बारिश हुई और वुज़ू में धोये जाने वाले हिस्सों पर दो-दो बूँद पानी बह गया और एक चौथाई सर तर भीग गया तो वुज़ू हो गया अगरचे उसने वुज़ू करने की निय्यत नहीं की थी। अगर कोई तालाब में गिर गया और वो हिस्से भीग गये जो वुज़ू में धोना फर्ज़ हैं तो भी वुज़ू हो जायेगा। इसी तरह अगर कोई शख्स मुँह हाथ धोने के लिये गया ताकि फ्रेश हो सके और वुज़ू के हिस्सों को धो लिया अगरचे आगे पीछे ही हो और सर पर हाथ भिगा कर फेर लिया तो भी वुज़ू हो जायेगा।
ऐसा इसीलिये है कि पानी ताहिर है यानी पानी की सिफत (Quality) है कि वो पाक करता है तो अब जान बूझ कर हो या अन्जाने में पानी पाक कर देता है जैसे आग की सिफत है जलाना तो जान बूझ कर आग में हाथ डालिये या अंजाने में हाथ तो जलना ही है। ऐसा तो नहीं है कि आप ये कहेंगे कि मै निय्यत करता हूँ हाथ जलने की और फिर हाथ डालें तो ही हाथ जले। आटा गूँदने वाले या वाली के हाथ में या कहीं नाखून में आटा जम जाये और सख्त हो जाये या पेंट का काम करने वालों के हाथों में रंग या पुट्टी या पेरिस या कोई और चीज़ जम जाये और सख्त हो जाये या लिखने वालों के हाथों में रौशनाई (इंक) लग जाये या मज़दूर के हाथ में गार, सीमेन्ट या वाइट सीमेन्ट वग़ैरह या आम लोगों की आँखों में सुरमा का जम जाना और इसी तरह बदन का मैल वग़ैरह होने के बावजूद अगर्चे उसके नीचे पानी ना जाये फिर भी वुज़ू हो जायेगा। इसे फिर से समझें कि जिस चीज़ की आदमी को उमूमन या खुसूसन ज़रूरत पड़ती रहती है और उसकी निगेहदास्त और अह्तियात में हरज हो तो नाखूनों के अंदर, ऊपर या किसी धोने के हिस्से पर लगे रह जाने से वुज़ू हो जायेगा अगर्चे उसके नीचे पानी ना बहे। ये इसीलिये है कि अगर ऐसा ना हो तो वुज़ू करने में बड़ी दुशवारी होगी। एक पेन्ट का काम करने वाला अगर अपने हाथों से मुकम्मल तौर पर कलर, पुट्टी, पेरिस वग़ैरह छुड़ाना शुरू करे तो रगड़-रगड़ कर नमाज़ का वक़्त चला जायेगा! किसी जगह छाला था और वो सूख गया लेकिन चमड़ा जिस्म से जुदा नहीं हुआ तो उसे जुदा कर के पानी बहाना ज़रूरी नहीं है बल्कि उसी के ऊपर पानी बहा लेना काफ़ी है और फिर जुदा कर दिया तो उस पर पानी बहाना ज़रूरी नहीं। मछली का सिन्ना अगर चिपका रह जाये तो वुज़ू नहीं होगा क्योंकि पानी उसके नीचे नहीं बहता। अब हम वुज़ू की सुन्नतें बयान करेंगे। ये सुन्नत है यानी करना चाहिये और इन्हें छोड़ना सहीह नहीं लेकिन अगर छूट जाये तो भी वुज़ू हो जायेगा।
(1) सवाब की निय्यत से और हुक़्मे इलाही बजा लाने की निय्यत से वुज़ू करना ज़रूरी है वरना वुज़ू तो हो जायेगा पर सवाब नहीं मिलेगा लिहाज़ा पहले निय्यत कर लेंं कि मै वुज़ू सवाब के लिये कर रहा हूँ और अल्लाह त'आला के हुक़्म की तामील कर रहा हूँ।
(2) बिस्मिल्लाह से वुज़ू को शुरू किया जाये और अगर वुज़ू से पहले इस्तिन्जा करे तो इस्तिन्जे से पहले भी बिस्मिल्लाह पढ़े लेकिन अगर बैतुल खला में दाखिल हो चुका है या कपड़े खोल चुका है तो फिर ज़िक्रे इलाही मना है।
(3) वुज़ू को शुरू यूँ करे पहले हाथों को गट्टों तक तीन बार धोयें।
(4) अगर पानी किसी बड़े बर्तन में हो और कोई छोटा बर्तन ना हो जिस से पानी निकल सके तो बायें हाथ की उंगलियाँ मिला कर सिर्फ़ उंगलियाँ पानी में डाल कर पानी निकाले और दायें हाथ को गट्टों तक तीन मर्तबा धो ले फिर जहाँ तक दायें हाथ को धोया है वो पानी में डाल सकता है, अब पानी निकाल कर बायें हाथ को धोये। ऐसा तब किया जा सकता है जब हाथ में कोई नजासत ना लगी हो, अगर नजासत लगी हो तो पूरा पानी नापाक हो जायेगा।
(5) अगर पानी बड़े बर्तन में है और छोटा बर्तन मौजूद है फिर भी हाथ पानी में डाला या उंगली या नाखून भी डाला तो पानी वुज़ू के क़ाबिल नहीं रहेगा वो माये मुस्तमिल हो जायेगा यानी उसे आप इस्तिमाल कर चुके हैं। हम बता चुके हैं कि नापाकी दो तरह की होती है एक छोटी और एक बड़ी तो दोनों से पाक होने के लिये अलग अलग तहारत है, दोनों तहारत में पानी की ज़रूरत होती है और एक बार पानी से नापाकी दूर कर ली जाये तो वो पानी फिर इस्तिमाल के क़ाबिल नहीं रहता। जो बे-वुज़ू हो और हाथ धुला हुआ ना हो तो वो अपना हाथ पानी में डालेगा तो ये पानी को मुस्तमिल कर देगा क्योंकि हदसे असगर (छोटी नापाकी) मौजूद हैं और जब छोटा बर्तन ना हो तो मजबूरी में डालने की इजाज़त दी गई है। ठंड में जो लोग लोटे में पानी ले कर उस में उंगली डुबा कर देखते हैं कि पानी कितना गर्म है तो इस से पानी मुस्तमिल हो जाता है और वुज़ू के क़ाबिल नहीं रहता लिहाज़ा इस में एहतियात ज़रूरी है वैसे नल वग़ैरह लग जाने से ये सूरत पेश नहीं आती।
(6) अगर किसी शख्स पर हदस है यानी वुज़ू या गुस्ल उस पर लाज़िम है और उसने हाथ धो कर पानी में हाथ डाला तो पानी मुस्तमिल नहीं होगा क्योंकि जितना हिस्सा धोया गया उस पर अब हदस ना रहा और जिस पर गुस्ल फर्ज़ नहीं सिर्फ़ बे-वुज़ू है तो अगर उसने कोहनियों तक हाथ धोये हैं तो पानी में बगल तक हाथ डाल सकता है क्योंकि अब उसके पूरे बाज़ू पर हदस बाक़ी ना रहा लेकिन जिस पर गुस्ल फर्ज़ है वो उतना ही हाथ डाले जितना धोया है क्योंकि उस के पूरे जिस्म पर हदस है।
(7) सो कर उठने के बाद हाथ धोने चाहिये। इस्तिन्जे से पहले भी और बाद में भी।
(8) कम से कम तीन तीन मर्तबा ऊपर नीचे, दायें बायें दाँतों पर मिस्वाक करें और हर बार मिस्वाक को धो ले। मिस्वाक ना बहुत सख्त हो ना बहुत नर्म मिस्वाक पीलू, ज़ैतून या नीम की कड़वी लकड़ी की होनी चाहिये। किसी मेवे या खुशबूदार दरख्त की ना हो, मिस्वाक का साइज़ एक बालिश्त होना चाहिये, उससे ज़्यादा रखना सहीह नहीं है और मोटाई इतनी होनी चाहिये जितनी मोटी सब से छोटी वाली उंगली होती है। जब मिस्वाक इस्तिमाल के क़ाबिल ना रहे तो उसे दफ़न कर देना चाहिये या किसी ऐसी जगह रख देना चाहिये जहाँ उसकी तौहीन ना हो क्योंकि वो एक ऐसा आला है जिस से सुन्नत अदा की जाती है और नापाक जगह पर ना फेंकें क्योंकि पाक चीज़ को नापाक में मिलाना सहीह नहीं है, इसलिये इस्तिन्जे खाने में भी थूकने से मना किया गया है क्योंकि वहाँ नजासत है और थूक पाक है।
(9) मिस्वाक दाहिने हाथ से करना चाहिये मिस्वाक इस तरह पकड़े कि सब से छोटी वाली उंगली मिस्वाक के नीचे और बीच की तीन उंगलियाँ मिस्वाक के ऊपर और अँगूठा सिरे पर नीचे हो और मुट्ठी ना बांधे।
(10) दाँतों की चौड़ाई में मिस्वाक करना चाहिये लम्बाई में नहीं और चित लेट कर मिस्वाक नहीं करना चाहिये।
(11) पहले दाहिनी जानिब ऊपर के दाँत मान्झें फिर बायीं तरफ़ ऊपर के फिर दायीं तरफ़ नीचे और फ़िर बायीं तरफ़ नीचे के।
(12) मिस्वाक करने से पहले उसे धो लेना चाहिये और मिस्वाक करने के बाद भी धो कर रखना चाहिये। जहाँ भी रखें तो खड़ी कर के रखें और रेशे वाला हिस्सा यानी जिस तरफ़ से मिस्वाक करते हैं उसे ऊपर रखना चाहिये।
(13) अगर मिस्वाक ना हो तो उंगलियाँ या कोई ऐसा कपड़ा जो इस्तिमाल का नहीं है उसे दाँतों पर रगड़ लें और अगर दाँत नहीं हैं तो मसूड़ों पर कपड़ा या उंगली रगड़ लें।
(14) नमाज़ के लिये मिस्वाक सुन्नत नहीं है बल्कि वुज़ू के लिये है लिहाज़ा अगर कोई एक वुज़ू से चंद नमाज़ें पढ़ता है तो एक मिस्वाक काफ़ी है जो उसने वुज़ू बनाते वक़्त किया था। हर नमाज़ के लिये वुज़ू का मुतालिबा नहीं है।
(15) अगर मुँह में बदबू पैदा हो जाये तो उसे दूर करने के लिये मिस्वाक करना अलग सुन्नत है।
(16) फिर तीन चुल्लू पानी से तीन मर्तबा कुल्ली करे और हर पुर्जे को धोये और रोज़ेदार ना हो तो गरगरा भी करे।
(17) फिर तीन चुल्लू से तीन मर्तबा नाक में नर्म गोश्त तक पानी चढ़ाये और अगर रोज़ेदार ना हो तो जड़ तक पानी पहुँचाये और ये काम दाहिने हाथ से करे फ़िर बायें हाथ से नाक साफ करे।
(18) मुँह धोते वक़्त दाढ़ी का खिलाल किया जाये यानी गर्दन की तरफ से उंगलियाँ दाखिल की जायें और सामने की तरफ़ से निकाली जायें, अगर एहराम बांधे हुये हों तो ऐसा ना करें।
(19) हाथ पाऊँ की उंगलियों का खिलाल करें। पैर की उंगलियों का खिलाल हाथ की छोटी वाली उंगली से करें। उंगलियों का खिलाल इस तरह करें कि बायें पैर की छोटी वाली उंगली से अँगूठे की तरफ़ आयें और दायें पैर में अँगूठे से छोटी वाली उंगली की तरफ़ जायें।
(20) जो हिस्से धोने के हैं उन्हें तीन मर्तबा धोयें और हर मर्तबा इस तरह धोयें कि कोई हिस्सा बाक़ी ना रहे वरना सुन्नत अदा ना होगी।
अगर कोई हिस्सा इस तरह धोया कि पहली मर्तबा में कुछ धुला फिर दूसरी बार में कुछ और फिर तीसरी बार में कुछ मुकम्मल हुआ तो ये एक ही बार धोना कहा जायेगा और वुज़ू हो जायेगा लेकिन सुन्नत अदा ना होगी। मस्लन आपने चेहरा धोया और कोई हिस्सा बाक़ी रह गया फ़िर दूसरी बार और तीसरी बार धोने पर वो हिस्सा धुला तो ये एक बार चेहरा धोना ही गिना जायेगा। तीन बार धोने का मतलब है कि हर बार मुकम्मल चेहरा धुल जाये वरना सुन्नत अदा ना होगी। इस में चुल्लू की कोई गिनती नहीं है चाहे कितने ही चुल्लू पानी लेने पड़ें। पूरे सर का एक बार मसह करना सुन्नत है और कानों का मसह करना भी। तरतीब भी सुन्नत है यानी पहले चेहरा धोना फिर हाथ धोना फिर मसह करना फिर पैर धोना और अगर इसके खिलाफ़ हुआ तो सुन्नत के खिलाफ़ होगा। मस्लन अगर कोई पहले पैर धोये फिर हाथ फिर मुँह और फिर सर का मसह करे तो भी वुज़ू हो जायेगा लेकिन ये खिलाफे सुन्नत है। वुज़ू में जो सुन्नतें हैं उन को एक आध बार छोड़ दिया तो बुरा है और अगर आदत डाली तो गुनाह है। दाढ़ी के जो बाल चेहरे के दाइरे से नीचे हैं इन का मसह सुन्नत है और धोना मुस्तहब है। वुज़ू में ये भी सुन्नत है कि एक हिस्से के सूखने से पहले दूसरा हिस्सा धोया जाये। अब हम वुज़ू के मुस्तहब्बात बयान करेंगे यानी इन का करना बेहतर है लेकिन छोड़ने पर कोई गुनाह नहीं है।
(1) दाहिनी जानिब से इब्तिदा करना यानी पहले दाँया हाथ और पैर धोना।
(2) रुख्सार को एक साथ धोना।
(3) दोनों कानों का मसह एक साथ करना।
(4) अगर एक हाथ हो तो मुँह धोने और|
(5) मसह करने में दाहिने से करें।
(6) उंगलियों की पुश्त से।
(7) गर्दन का मसह करना।
(8) वुज़ू करते वक़्त काबा रुख बैठना।
(9) ऊँची जगह वुज़ू करना।
(10) बैठ कर वुज़ू करना।
(11) वुज़ू का पानी पाक जगह गिराना मुस्तहब है।
(12) जिस्म के आज़ा (पार्ट्स) पर पानी बहाते वक़्त हाथ फेरना खास कर जाड़े के मौसम में।
(13) पहले तेल की तरह पानी मल लेना, खुसूसन जाड़े में।
(14) वुज़ू का पानी अपने हाथ से भरना।
(15) दूसरे वक़्त के लिये पानी भर कर छोड़ना।
(16) वुज़ू करने में बगैर ज़रूरत दूसरे से मदद ना लेना।
(17) अँगूठी को हरकत देना अगर ढीली हो और उस के नीचे पानी बह जाना मालूम हो और अगर तंग (Tight) हो कि पानी नहीं जाता तो फर्ज़ होगा।
(18) अगर उज़्र ना हो तो वक़्त से पहले वुज़ू कर लेना।
(19) वुज़ू इत्मिनान से करना चाहिये, जल्दी करना सहीह नहीं है।
(20) टपकने वाले क़तरों से कपड़े को बचाना।
(21) कानों का मसह करते वक़्त छोटी वाली उंगली (भीगी हुई) कान के सुराख में डालना मुस्तहब है।
(22) जो वुज़ू कामिल तौर पर करता हो उसे खास जगहों मस्लन टखनों, एड़ियों, घइयों और करवटों का ख्याल रखना मुस्तहब है और बे-ख्याली करने वालों पर फर्ज़ है।
(23) वुज़ू का बर्तन मिट्टी का हो।
(24) अगर तांबे वग़ैरह का बर्तन हो तो भी हर्ज नहीं पर क़लाई किया हुआ हो।
(25) अगर बर्तन लोटे की क़िस्म का है तो उसे बायें जानिब रखें।
(26) अगर बर्तन तश्त (प्लेट) की क़िस्म का है तो दायीं तरफ़ रखें।
(27) आफ्तबा (एक क़िस्म का लोटा) में दस्ता लगा हो तो दस्ते को तीन बार धो लें।
(28) ऐसे लोटे के दस्ते पर हाथ रखें, मुँह पर हाथ ना रखें।
(29) दाहिने हाथ से कुल्ली करना और नाक में पानी डालना।
(30) बायें हाथ से नाक साफ़ करना।
(31) बायें हाथ की छोटी वाली उंगली नाक के सुराख में डालना मुस्तहब है।
(32) पाऊँ को बायें हाथ से धोना।
(33) मुँह धोते वक़्त माथे के सिरे पर ऐसा फैला कर पानी बहाना कि ऊपर बालों का कुछ हिस्सा भी धुल जाये।
(34) दोनों हाथों से मुँह धोना।
(35) हाथ पाऊँ धोने में उंगलियों से शुरू करना।
(36) चेहरे के दायरे से थोड़ा बढ़ा कर पानी बहाना।
(37) हाथ पाऊँ धोते वक़्त भी थोड़ा बढ़ा कर ऊपर तक धोना।
(38) सर के मसह का मुस्तहब तरीक़ा ये है कि अँगूठे और कलिमे की उंगली के इलावा बाक़ी दोनों हाथों की तीन-तीन उंगलियों को मिला कर माथे के सिरे पर रखें और पीछे सर की गुद्दी तक ले जायें, इस में हथेलियों को सर से जुदा रखें।
(39) फिर कलिमे की उंगली के पेट से कान के अंदरूनी हिस्से का मसह करें।
(40) फिर अँगूठे के पेट से कान के पीछे मसह करें और उंगलियों की पुश्त से गर्दन का मसह करें।
(41) हर हिस्सा धो कर उस पर हाथ फेर देना चाहिये कि पानी के क़तरे ना टपकें और खास कर मस्जिद में जाते वक़्त क्योंकि मस्जिद में वुज़ू के क़तरे टपकाना मकरूहे तहरीमी है।
(42) बहुत भारी बर्तन से वुज़ू ना करें कि पानी ज़्यादा बहेगा और इसी तरह अगर कोई नल बहुत सख्त है तो उस से भी बचें खास कस कमज़ोर लोग वरना बन्द करने और खोलने में काफ़ी पानी बहेगा।
(43) ज़ुबान से कह लिया जाये कि वुज़ू करता हूँ।
(44) हर हिस्से के धोते वक़्त निय्यत का हाज़िर रहना।
सर का मसह करने का एक तरीक़ा तो हमने बयान किया कि अँगूठे और कलिमे की उँगली को छोड़ कर बाक़ी तीन उंगलियों को मिला लें और पेशानी के सिरे से पीछे सर की गुद्दी तक ले जायें फिर हथेली को सटा कर वापस ले आयें, एक तरीक़ा ये भी है कि हथेली और उंगलियों समेत सटा कर एक ही बार पीछे ले जायें, ये तरीक़ा औरतों के लिये आसान है कि बाल बड़े होने की वजह से पहले तरीक़े में परेशानी हो सकती है।
वुज़ू ना हो तो नमाज़, नमाज़े जनाज़ा, सजदा -ए- तिलावत और क़ुरआन को छूने के लिये वुज़ू करना फर्ज़ है। तवाफ़ के लिये वुज़ू करना वाजिब है। गुस्ले जनाबत से पहले वुज़ू करना, जुनूब (नापाक) शख्स को खाने, पीने और सोने से पहले वुज़ू करना सुन्नत है। अज़ान, इक़ामत, जुम्आ का खुत्बा, ईद का खुत्बा और रोज़ा -ए- रसूल ﷺ की ज़ियारत के लिये, वुक़ूफ -ए- अरफ़ा, सफ़ा व मरवा के दरमियान सई के लिये वुज़ू करना सुन्नत है। सोने के लिये और सोकर उठने के बाद वुज़ू करना मुस्तहब है। मय्यित के नहलाने या उठाने के बाद वुज़ू करना मुस्तहब है। जिमा (सोहबत) से पहले और जब गुस्सा आये तो वुज़ू करना मुस्तहब है। जुबानी क़ुरआन पढ़ने के लिये, हदीस और इल्मे दीन पढ़ने और पढ़ाने के लिये,जुम्आ व ईदैन के इलावा खुत्बों के लिये, कुतुबे दीनिया छूने के लिये,झूट बोलने, गाली देने और फहश बोलने के बाद,काफ़िर का बदन छू जाने पर,सलीब या बुत छू जाने पर,कोड़ी या सफ़ेद दाग वाले से मस करने पर,बगल खुजाने से जब कि इस में बदबू हो,गीबत करने, क़हक़हा लगाने, लग्व अशआर पढ़ने और ऊँट का गोश्त खाने के बाद,किसी औरत के बदन से बे-हाइल मस हो जाने पर और बा वुज़ू शख्स के लिये| नमाज़ पढ़ने के लिये वुज़ू करना मुस्तहब है। जब वुज़ू टूट जाये तो वुज़ू कर लेना मुस्तहब है। नाबालिग पर वुज़ू फर्ज़ नहीं लेकिन उन से करवाना चाहिये ताकि सीखें। अगर लोटे से वुज़ू करें तो लोटे की टूँटी ना ज़्यादा तंग हो कि कम पानी गिरे ना ज़्यादा फराख हो कि पानी ज़्यादा गिरे बल्की दरमियानी हो। नल को भी इतना ही खोलें जितनी ज़रूरत है, ज़्यादा खोल कर पानी बहाना जाइज़ नहीं। चुल्लू में पानी लेते वक़्त ख्याल रखें कि पानी बरबाद ना हो। जो काम आधे चुल्लू पानी में हो सकता है उस के भर चुल्लू लेना सही नहीं है। मस्लन नाक में पानी डालने के लिये आधा चुल्लू काफ़ी है तो भर कर लेना पानी को बरबाद करना होगा। हाथ, पाऊँ सीना और पुश्त पर ज़्यादा बाल हों तो उसे क्रीम से साफ कर लें या तरशवा लें, इस से पानी कम खर्च होगा ज़्यादा बाल होने की वजह से पानी ज़्यादा खर्च होता है।