Ramadan Topic: वक़्ते सेहरी तौबा व अस्तग़फा़र - Ilm Noor Hai

वक़्ते सेहरी तौबा व अस्तग़फा़र - Ilm Noor Hai

अल्लाह तबारक व तआ़ला ने कलामे मजीद में इरशाद फ़रमाया (मफ़हउम) और पिछले पहर माफी़ मांगने वाले। बाज़ मुफ़स्सिरीन ने फ़रमाया कि इस आयत से नमाजे़ तहज्जुद पढ़ने वाले मुराद हैं और बाज़ के नज़दीक इससे वह लोग मुराद हैं जो सुबह उठ कर इस्तिग़फा़र पढ़ें चूंकि उस वक्‍त दुनियावी शोर कम होता है, दिल को सुकून होता है, रहमते इलाही का नुज़ूल होता है। इसलिए उस वक्‍त तौबा व इस्तिग्फा़र, दुआ वगैरा बेहतर है।

सेहरी के वक्‍त तौबा व अस्तग़फा़र करना अल्लाह के बरगुजी़दा बंदों की आदते करीमा रही है। रोजा़ना की मस्रुफियतों की वजह से हमें सेहरी के वक्‍त उठने का मोका नहीं मिलता कि हम उस वक्‍त बारगाहे समदियत में इस्तिग़फा़र करें लेकिन माहे रमज़ानुल मुबारक में रोजा़ना सेहरी के लिए हम बेदार होते हैं तो हमें चाहिये कि कम अज़ कम दो रक़ॴत नफि़ल अदा करके बारगाहे रब्बुल इज्ज़त में सर बसजूद हो जाऐ और इस्तिग़फा़र करके सेहरी के वक्‍त मग़्फि़रत तलब करने वालों में शामिल हो जाएँ।