मकामाते जवारिया में एक अजीब बात लिखी हुई है। एक बार एक ख़ानकाह फैसलाबाद में दो बूढ़े आपस में उलझना शुरू हो गए। ।
देखने वाले बड़े हैरान हुए कि ये दोनों जाहिर में बड़े नेक और मुत्तकी नजर आते हैं, सुन्नत का इत्तिबी उनके जिस्म पर बिल्कुल जाहिर है मगर एक दूसरे से लड़ रहे हैं। एक उसको थप्पड़ लगाता है दूसरा उसको लगाता है, वह इसे खींचता है यह उसे खींचता है और कुछ बातें कर रहे हैं।
एक साहब करीब हुए कि आख़िर बात क्या है? जब कुरीब हुए तो क्या देखते हैं कि वो दोनों मुहब्बते इलाही. में डूबे हुए थे कि आपस में बैठे हुए उनमें से एक ने केह दिया, अल्लाह मेरा है। जब दूसरे ने सुना तो वह उलझने लगा कि नहीं, वह उसे मारता है और कहता है कि “अल्लाह मेरा है।” वह उसे मारता है और कहता है कि “अल्लाह मेरा है” और मुहब्बत का इतना गलबा था कि दोनों इस बात पर उलझ रहे थे, अल्लाहु अकबर।
"मुझको न अपना होश न दुनिया का होश है
बैठा हूँ मस्त हो के तुम्हारे जमाल में"