ऐ शहंशाहे मदीना अस्सलातु वस्सलाम
जीनते अर्शे मुअल्ला अस्सलातु वस्सलाम
रब्बे हबली उम्मती कहते हुए पैदा हुए
हक ने फरमाया कि बखशा अस्सलातु वस्सलाम
रौशनी में आमिना ने जिनकी देखा मुलके शाम
वाह वाह कया चांद निकला अस्सलातु वस्सलाम
दस्त बस्ता हर फरिश्ते ने पढ़ा उन पर दुरुद
कयों न हो फिर विर्द अपना अस्सलातु वस्सस्लाम
सर झुका कर बा अदब इशके रसूले पाक में
केह रहा है हर फरिश्ता अस्सलातु वस्सलाम
ख़ुद खुदाए पाक भी हुब्बे हबीबे पाक में
केह रहा है ये अजल से अस्सलातु वस्स्लाम
मैं वो सुन्नी हूं जमीले कादरी मरने के बाद
मेरा लाशा भी कहेगा अस्सलातु वस्सलाम